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मुसाफिर…

©डीपी लहरे “मौज”

परिचय- कवर्धा, छत्तीसगढ़


 

ग़मों को दिल में दबाके जो मुस्कुरातें हैं

वो जुगनुओं की तरह यार जगमगाते हैं

 

नज़र उठा के इन्हें देखते नहीं फिर भी

ये हुस्न वाले हमेशा हमें रिझाते हैं

 

जो मेहनतों की कभी कद्र ही नहीं समझे

कमाई बाप की अक्सर वही उड़ाते हैं

 

बड़े अज़ीब हैं मसनद पे बैठने वाले

ये उंगलियों से गरीबों को ही नचाते हैं

 

सफ़र का वक़्त जो आए तो कौन रुकता है

मुसाफिरों की तरह लोग आते-जाते हैं

 

ऐ ‘मौज’ दिल को सुकूं और चैन देने को

हम अपनी एक ग़ज़ल रोज़ गुनगुनाते हैं

 

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