मेरी व्यथा l ऑनलाइन बुलेटिन
©सरस्वती राजेश साहू
आ सुनाऊँ मेरी व्यथा को,
मन आहत पल-पल होता।
तेरी चाहत में अब साजन,
दिल का हर कोना रोता।
सजग सलोना कंचन जैसा,
दमक रहा था आँगन में।
पुष्प खिलाया प्रेम का तुने,
भरा रहा वो दामन में।
आज मगर प्रिय रिक्त हुआ अब,
छोड़ मुझे क्यूँ तू सोता।
तेरी चाहत में अब साजन,
दिल का हर कोना रोता…।
विरह, व्यथा की पीड़ा लपटे,
अंगारों सी लगती है।
हार रही मैं निज जीवन से,
यही भावना कहती है।
खुशियों का एक तिनका नहीं,
अपार हृदय दुःख ढोता।
तेरी चाहत में अब साजन,
दिल का हर कोना रोता…।
मेरी व्यथा,मेरी हालत क्या,
होती है आ देख जरा।
चोट लगी है इतनी सारी,
यह जीवन अब नर्क भरा।
तेरे बिना मैं सह न पाऊँ,
मन धीरज हर पल खोता।
तेरी चाहत में अब साजन,
दिल का हर कोना रोता…।
आ सुनाऊँ मेरी व्यथा को,
मन आहत पल-पल होता।
तेरी चाहत में अब साजन,
दिल का हर कोना रोता।