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मेरे पिता; मेरा गौरव। Newsforum

संकलनकर्ता :-अर्जुन खुदशाह, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


माँ का गुणगान तो हम हमेशा करते है,
पर बेचारे पिता ने क्या बिगाड़ा है,
संकट से मुक्ति का मार्ग वही तो दिखाता है,
अगर माँ के पास है आँसू का दरिया,
तो पिता के पास सयंम का अस्त्र है,
हमें याद रहती है खाना पकाने वाली माँ,
पर उस खाने का इंतजाम पिता ही तो करता है,
देवकी और यशोदा का प्रेम मन में रखिये,
पर टोकरी में ले जाने वाले पिता को भी याद रखिये,
पुत्र-वियोग पर कौशल्या बड़ी रोई थी,
तो दशरथ तो पुत्र-वियोग में स्वर्ग ही सिधार गये थे,
समय पर माँ होमवर्क पूरा करवा देती है,
पर उधार लेकर डोनेशन देकर प्रवेश पिता ही दिलाता है,
ससुराल को विदा जब होती है बेटियाँ तो,
माएं धाड़-धाड़ आँसू बहा रो देती है पर,
मेरी गुडिया का पूरा ख्याल रखना,
हाथ जोड़कर खून के आँसू रोता पिता ही तो कहता है,
पिता बचत कर कर के नई-नई जींस लाता है,
पर खुद तो पुरानी शर्ट-पेंट पहनते है।


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