.

मेरी अंतिम इच्छा | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई


 

तिरंगे में लिपट कर, शहीद कहलाऊं मैं।

यही मेरी अंतिम इच्छा, बार-बार दोहराऊं मैं।

 

न देश का पहरेदार हूं,

न छात्र होनहार हूं,

न बड़ा वयापार न कर्म मेरे,

न कोई दिलदार हूं।

 

देश को समर्पण कर, मिट्टी में मिल जाऊं मैं।

देश की खातिर, कुछ ऐसा कर जाऊं मैं।

यही मेरी अंतिम इच्छा, बार-बार दोहराऊं मैं।

 

मन में एक लक्ष्य रहे।

देश हमारा सभ्य रहे।

ग़द्दारों की आंखे नोच

मृत्यु लोक पहुंचाऊं मैं।

 

देश को समर्पण कर, मिट्टी में मिल जाऊं मैं।

देश की खातिर, कुछ ऐसा कर जाऊं मैं।

यही मेरी अंतिम इच्छा, बार-बार दोहराऊं मैं।

तिरंगे में लिपट कर, शहीद कहलाऊं मैं।

 

जिज्ञासा रहे मन में,

 अमन रहे चमन में,

यह हमारी शान तिरंगा,

लहराता रहे गगन में।

अपने चमन की रखवाली हेतु,

एक माली बन जाऊं मैं।

 

देश को समर्पण कर, मिट्टी में मिल जाऊं मैं।

देश की खातिर, कुछ ऐसा कर जाऊं मैं।

यही मेरी अंतिम इच्छा, बार-बार दोहराऊं मैं।

तिरंगे में लिपट कर, शहीद कहलाऊं मैं।

 


Check Also
Close
Back to top button