मेरी इच्छा | Newsforum
©डॉ. संतराम आर्य, वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली
परिचय : जन्म 14 फरवरी, 1938, रोहतक।
कितनी जल्दी जल्दी पलट जाते हैं किताबों के पन्ने , गर मेरी जिंदगी भी यूं ही एक दिन पलट जाए तो,
मजा आ जाए |
कितनी जल्दी जल्दी बन गए हजारों दुश्मन मेरे,
गर यूं ही दो चार दोस्त भी बन जाएं तो,
मजा आ जाए |
अपने मतलब के लिए तो सभी ढूंढते हैं मुझको,
गर मेरे मतलब के भी दो चार साथी जाए तो,
मजा आ जाए |
कितना तेजी से पनप रहा है जाति धर्म का रोग
गर राजनेता हैवानियत से इंसानियत पर आ जाए तो
मजा आ जाए |
ढेरों देखता हूं रोजाना आसपास भूख से तड़पते,
गर इनकी भूख मिटाने की मेरी हिम्मत बन जाए तो,
मजा आ जाए |
सपने सुहाने जो निशदिन आते रहते हैं मुझको,
गर ये सभी एक दिन हकीकत में बदल जाएं तो,
मजा आ जाए |
जब किसी नेता विद्वान महात्मा की बात में भी दम ना रहे,
और एक शराबी आकर कान में धीरे से कह जाए तो,
मजा आ जाए |
जब भगवान को भी पत्थर का बना कर बेचने लगे बाजारों में तो
शैतान को इंसान कौन बनाएगा, गर यह राज यह बात सबकी समझ में आ जाए तो,
मजा आ जाए |
चीर फाड़कर तो जाहिल सभी दिल ले जाएंगे मेरा,
गर मीठी बातों से सुकुन चैन देकर ले जाएं तो,
मजा आ जाएं |
अपने जीने तक तो ‘संतराम’ खुश रखेगा सबको,
गर मेंरे जाने के बाद भी किसी को शांति मिल जाए तो,
मजा आ जाए |