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प्रकृति हुई प्रदूषित | Newsforum

©मोहित प्रजापति, नवागढ़ मारो


 

 

प्रकृति प्रदूषण से भरपूर हुआ।

हर तरफ देखो ज़हरीला धुँआ।

 

अपने पैरों में इंसान मार रहा कुल्हाड़ी।

सब कुछ जानके भी बन रहा अनाड़ी।

न होते ये हरे भरे पेड़ न होती नदियां।

न होता ये झरनों का मीठा सा सरगम।

देखो देखो इंसान की मूर्खता की सीमा।

ख़ुद के लिए ख़ुद ही खोद रहा कुँआ।

 

प्रकृति प्रदूषण से भरपूर हुआ।

हर तरफ देखो जहरीला धुँआ।

 

कुल्हाड़ी से मार पेड़ों को दे रहा चोट।

हर रोज कर रहा प्रदूषण का विस्फ़ोट।

पेड़ लगाओ पेड़ बचओ इंसानों का नारा।

मन मे रखता है इंसान हमेशा खोट।

मुझे मत मारो कहता हर एक पेड़।

पेड़ों का कटना अब हर रोज हुआ।

 

प्रकृति प्रदूषण से भरपूर हुआ।

हर तरफ देखो ज़हरीला धुँआ।

 

हर तरफ देखो फैल रही बीमारी।

रोज रो रही है देखो प्रकृति हमारी।

अपनी दुश्मन ख़ुद है ये दुनिया सारी।

क्या करे हमारी प्रकृति माँ बेचारी।

अभी वक्त है सँभल जाओ ये इंसान।

अभी तो विनास का बस शुरुआत हुआ।

 

प्रकृति प्रदूषण से भरपूर हुआ।

हर तरफ देखो ज़हरीला धुँआ।

 


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