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प्रकृति | Newsforum

©अनिल बिड़लान, हरियाणा 

परिचय : शिक्षक, काव्य संग्रह- कब तक मारे जाओगे और सुलगते शब्द, विभिन्न समाचार पत्रों व पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित.


 

 

प्रकृति को दे रहा है

मानव जितना कष्ट।।

मानव संस्कृति भी

हो रही है उतनर नष्ट।।

विषैला हुआ पानी

है परिवेश अशुद्ध सारा

आदमी फिर रहा

स्वच्छ हवा को मारा मारा।।

पग पग पे कचरा

प्लास्टिक का है बोलबाला।

कंक्रीट के महल बना

धरा को वृक्षहीन कर डाला ।।

 


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