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प्रकृति | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

प्रकृति समानता

दिखलाती है

अपना स्नेह सबमें

बरसाती है

ऊंच-नीच

भेदभाव

वह कहां दर्शाती है

प्रकृति समानता

दिखलाती है

बहती हुई

ठंडी पुरवाई सब

ओर बहाती है,

उमड़ती हुई

काली घटाएं

सबके आंगन बारिश

बरसाती है

वे, अमीरों- गरीबों

सबके मन को

महकाती है

धरती पर उगने वाली

नन्हे पौधे क्या

इंसानों के जाति

देखकर उगते है?

खेतों पर लहलहाती

फसलें क्या

क्या इंसान देखकर

लहलहाती हैं?

सूर्य की जीवनदायिनी

किरणें

सबके मुंडेर पर

निष्कपट अपनी रश्मि

बिखराती है

प्रकृति समानता

दिखलाती है

अपना स्नेह सबमें

बरसाती है,

संपुर्ण प्राकृतिक संपदा

सबको

समता, समानता, बंधुत्व

ही सिखलाती है

प्रकृति ऊंच-नीच

भेदभाव

कहां दर्शाती है!

प्रकृति सा बन जाओ

सब

सभी असमानता मिटाओ

अब

भाई – भाई बन जाओ

सब

इंसानियत, भाईचारा ही

सच्ची खुशियां

हर्षाती है

प्रकृति समानता

सिखलाती है

अपना स्नेह सबमें

बरसाती है,,,,,,


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