.

मन के नयन उघार | newsforum

©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ 


 

1) जन जन में ही राम है, मन के नयन उघार

नर नारायण रूप है, सेवा ही हरि द्वार

 

2) गंगा यमुना नेह की, धारा धरते नैन

गदगद होकर प्रेम से, मन को देते चैन

 

3) जल पी ले नित प्रेम का, भोजन कर ले भाव

भूख लगे न प्यास लगे, उत्तम बने प्रभाव

 

4) दर्शन कर ले आप ही, अंतर्मन को देख

नेकी पाप उतार दे, विधि रचते शुभ लेख

 

5) हाथ सभी के कर्म है, फल तो देते काल

शुभागमन हो भारती, ऊँचा चमके भाल

 

6) चाल रहे केसर सदा, गुण के उड़े सुगंध

चंदन कायाकल्प सम, जुड़े रहे अनुबंध

 

7) ओझल है जो धूल से, जिन पर लगे हैं राब

मन के नयन उघार ले, दृश्य दिखेंगे साफ

 

8) बैरी तो उन्माद है, करता जो निज नाश

दूर रखो इस भाव को, कारण सकल बिनाश

 

9) मिथ्या, चारी व चुगली, मानव के व्यभिचार

मान हरण करता चले, दुर्वृत्ति, अनाचार

 

10) मानव तन पाकर अगर, किया नहीं शुभ काज

काया को धिक्कार है, कहता सकल समाज

 

11) सोच समझ चिंतन करे, अपने करम सुधार

डगमग-डगमग डोलती, नैया है मझधार

 

12) जन जन भीतर राम है, अपने भाग संवार

सेवा कर सदा प्रेम से, हिय में राम उतार

 

13) अभिमान को तोड़ जरा, मन के नयन उघार

सूक्ति में युक्ति मिले जो, करते पथ उजियार

 

14) मानव तेरे सोच पर, करे भारती वास

बुद्धि प्रखर होती रहे, चढ़ते कदम विकास

 

15) मानवता में राम है, जीवन का यह सार

जन-जन में वो गुण रहे, मन के नयन उघार …


Back to top button