नई जिंदगी | ऑनलाइन बुलेटिन
©जलेश्वरी गेंदले, शिक्षिका.
परिचय– पथरिया, मुंगेली, छत्तीसगढ़
नई सुबह, नई दोपहर, नई शाम
बस लगी है होड़
दिन रात काम करें
चाहत है बस एक आराम
सोच -सोच के यही ठहर जाते हैं
कब आएगा वह शाम
मिले जो हमें आराम।
नई जिंदगी
नई रिश्ते- नाते, नई पहचान
पल भर में भी अपने बन जाते हैं
कैसे भला लोग अनजान
पूछे खैरियत
ना हो कोई शख्सियत
बस अपनापन का हो व्यवहार
जो रखे अपनों का मान सम्मान और ध्यान।
नई जिंदगी
उगता सूरज ढलता है,
निकला चांद छुपता है,
दिन महीने साल गुजरता है,
वक्त का पहिया न रुकता है
घड़ी की टिक- टिक से
जीवन रूपी पहिया चलता है।
नई जिंदगी
कहते हैं बीते साल के साथ
बुरी यादों को भूल कर
एक नई सफर की ओर बढ़े
जो आने वाला कल के लिए सुखमय हो।
बीते हुए साल में जब अपना कोई
बिछड़ जाए
तो कैसे उसे यह दिल भुलाए
एक दर्द जो यादों में बस जाए
फिर भी यह मन मुस्काए
क्योंकि अब नया साल जो है आय
नई जिंदगी
न सही
बीते पल ही वापस आ जाए।