हे बुध्द, आकर तुम्हारी शरण में | Newsforum
©संजय वासनिक, चेंबुर, मुबंई
ना तुम ईश्वर थे
ना ईश्वर के पुत्र
और
ना ही किसी ईश्वर द्वारा
इस धरती पर भेजे गये
कोई अलौकिक दूत..
तुम तो थे एक इंसान …
जिसने इंसान को इंसान से
जोड़े रखने का दिया मूलमंत्र
बताया था तुमने एक नया रास्ता…
सत्यता से सत्य जीवन जीने का,
देकर मानवता का संदेश …
सिखाया था कैसे बनाया जाये,
मानव से मानवता का रिश्ता…
ना तुमने किसी पर प्रेम किया,
ना ही किसी का तिरस्कार….
तुम्हारे मन में हर मानव के,
प्रति भरी है करुणा अपार ….
ना तुमने किसी की; की तारीफ
ना ही किया किसी का अपमान,
पर तुमने तठस्थ भाव से कर
चिकित्सा, किया मन का उपचार …
ना ही किसी को दिया शाप और उ:शाप
ना ही तुमने किसी को दिया आशिर्वाद…
पर सिखाया चलना मानवता के पथ पर
मानव को बताया मानवतावाद …
माने तो तुम भिक्षा पर उपजिवीका
करने वाले चरित भिक्षुक….
ना माने तो एक साधारण इंसान …
लेकिन तुम हो प्रकांड विद्वान
जिसके अंदर भरा है
अद्वितीय तत्वज्ञान…
ना तुम अल्प हो, ना ही अति
अल्प और अति के मध्य
स्तंभो पर बने पुल पर …
एक साधारण इंसान
सहज चलने वाले
मध्यम मार्ग पर ….
तुम सूक्ष्म अणु हो या
हो आकाश अनंत..
जिसका ना कोई
आदि ना कोई अंत ..
तुम हो ज्ञान के गहरे संमंदर
जिसका ना कोई तल
ना कोई अंदाज..
इस नादान के समझ से परे हो
कि कौन हो तुम और क्या हो तुम ..
तुम हो धम्म के संस्थापक
या केवल साधारण श्रमण
या हो तथागत,
या सम्यक संबुध्द..
जो कभी बालक था..
युवा राजकुमार था,
जो वृध्द हुआ और…
मानवीय कालक्रमन की
अवस्था से गुजरा हुआ
एक साधारण इंसान ..
हे महामानव तुम हो
शाश्वत सत्य,
तुम्हें मिटाने वाले
कई आघातों से परे
एक जीवंत विचारधारा हो तुम ..
तुम मेरा मन हो,
हर मानव का मन हो,
हे बुध्द …
तुम कोई और नहीं
प्रबुध्द मानव हो..
इसिलिए, हे तथागत
मैंने तुम्हें किया है स्वीकार..
आकर तुम्हारी शरण में …
आकर तुम्हारी शरण में …