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ऐ राही ! तू चलता जा | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीरज यादव

परिचय– चम्पारण, बिहार.


 

 

ऐ राही ! तू मेरी बात सुन,

अपनी राह तू ख़ुद चुन।

जितनी बार तू गिरे, उतनी बार तू संभलता जा,

ऐ राही! तू चलता जा।

 

जैसे सूरज है आकाश में,

और तू है उसकी प्रकाश में।

उसके जैसा कभी ढलना तो कभी उगता जा,

ऐे राही ! तू चलता जा।

 

जल मत तू बदले की आग में,

सफल होना है तो मग्न रह अनुराग में।

कोई तुझे अपमान करें, तो उसकी नादानी पर हँसता जा,

ऐ राही ! तू चलता जा।

 


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