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ओमप्रकाश वाल्मीकि सिर्फ दलित लेखक नहीं राष्ट्रीय हिंदी साहित्यकार : डॉ. एन. सिंह | Onlinebulletin.in

राज वाल्मीकि | #Onlinebulletin.in | #Onlinebulletin | जाने-माने आलोचक और लेखक डॉ. एनसिंह ने कहा कि यदि ओमप्रकाश वाल्मीकि को सिर्फ दलित लेखक कहा जाए तो यह उनके साथ अन्याय होगा, उनको कमतर आंकना होगा, वेराष्ट्रीय स्तर के हिंदी साहित्यकार थे। उनका समग्र साहित्य प्रकाशित होकर सामने आना चाहिए। उनकी आत्मकथा जूठन दलित साहित्य की ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य की कालजयी रचना है। डॉ. एन. सिंह साहित्य चेतना मंच द्वारा आयोजित ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जूठन दलित समाज के कटु यथार्थ को हमारे सामने रखती है और उनके साथ होने वाले भेदभाव और छूआछूत से समस्त विश्व को रूबरू कराती है।

‘जूठन’ उनकी कालजयी रचना है। जिसका अनुवाद देश-विदेश की 10 भाषाओं में हो चुका है। उनकी जूठन के अंश एवं कई कहानियां पाठयक्रम में पढ़ाई जाती हैं। उनकी कविताएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए एक छोटी कविता का अंश जैसे –‘चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का, फिर मेरा क्या।’या उनकी एक कविता है -‘आप शायद जानते हों!’। यह कविता जब नवभारत टाइम्स में छपी थी तो काफी हंगामा हुआ था। इसी प्रकार उनकी कहानी -‘शवयात्रा’ जब प्रकाशित हुई थी तो उस की काफी आलोचना हुई थी।

 

ओमप्रकाश वाल्मीकि ने ‘दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र’ लिखकर उन सवर्ण आलोचकों को जवाब दिया था जो दलित साहित्य में शिल्पकला की कमी बताते थे। उन्होने ‘सफाई देवता’ लिखकर सफाई कर्मचारी समुदाय के इतिहास में भी झांकने की कोशिश की। उनकी कहानियों में‘अम्मा’, ‘बिरम की बहू’, ‘सलाम’’, ‘पच्चीस चौके डेढ़ सौ’आदि उल्लेखनीय कहानियां हैं। उन्होंने कांचा इलैया की पुस्तक ‘व्हाई आई एम नाट अ हिन्दू’ का हिन्दी में अनुवाद किया। ओमप्रकाश वाल्मीकि लेखक के अलावा नाटककार और अभिनेता व नाट्य निर्देशक भी थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

 

ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपने समय में हिंदी साहित्यकी एक ऐसी गैर-उर्वर भूमि कोतोड़कर उपजाऊ भूमि में तब्दील किया जो सदियों से उपेक्षित पड़ी थी। यद्यपि हिंदी साहित्य लिखा जा रहा था पर वह जातिवाद से पीड़ित वर्ग, जाति भेद से पीड़ित समाज की आवाज नहीं बन रहा था। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने इस बंजर भूमि को जोत-बोकर इस पर दलित साहित्य की फसल उगाई। यह कार्य उस दौर में बहुत कठिन था। मगर ओमप्रकाश वाल्मीकि ने यह कर दिखाया। इसके साथ ही उन्होंने दलित साहित्यकारों को यह सन्देश दिया कि हमें क्या लिखना चाहिए और क्यों लिखना चाहिए। उन्होंने साहित्य को मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि एक खास मकसद के लिए लिखने की बात कही।

 

उन्होंने‘’जूठन’’जैसी आत्मकथा लिखी और सफाई समुदाय की ऐसी पीड़ा को साहित्य जगत के सामने रखा जिस पर अब तक कोई ध्यान नहीं दे रहा था। एक अछूते क्षेत्र से साहित्य का परिचय कराया। उन्होंने“अम्मा” जैसी कहानी लिखी जो मैला ढोने वाली महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने दलित वर्ग के आपसी मतभेदों को भी सामने रखने के लिए “शवयात्रा” जैसी कहानी भी लिखी जो उस सामय बहुत चर्चित रही। हालांकि उसकी आलोचना भी बहुत हुई। किसी कृति की आलोचना करना बुरा नहीं है यदि वह सही नीयत और निष्पक्ष ढंग से की जाए। ओमप्रकाश वाल्मीकि का रचना संसार उनका साहित्य नई पीढ़ी का उसी तरह मार्ग दर्शन करता है जिस प्रकार अँधेरे में सागर के यात्रियों को लाइट हाउस या प्रकाशस्तम्भ।

 

ओमप्रकाश वाल्मीकि केपरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर साहित्य चेतना मंच (साचेम), सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, उनके नाम पर दलित साहित्य मेंउत्कृष्ट योगदान करनेवाले रचनाकारों को ओमप्रकाश वाल्मीकि साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। साचेम ने इसकीशुरुआत वर्ष 2020 से की है। इस सम्मान में प्रतिवर्ष 10 रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है। इस बार यानी 2021 के चयनित रचनाकार हैं:

 

1.प्रो. नामदेव : दिल्ली

2.डॉ. सुमित्रा मेहरोल : दिल्ली

3.संतोष पटेल : बिहार

4.डॉ. अमित धर्मसिंह : उत्तर प्रदेश

5.डॉ. कार्तिक चौधरी : पश्चिम बंगाल

6.डॉ. सुरेखा : हरियाणा

7.डॉ. चैन सिंह मीना : राजस्थान

8.आर. एस. आघात : उत्तर प्रदेश

9.डॉ. राम भरोसे : उत्तराखंड

10.सुनील पंवार : राजस्थान

 

विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कवयित्री और लेखिका डॉ. पूनमतुषामड ने कहा कि हम सहानुभूति में लिखे गए साहित्य को दलित साहित्य नहीं कह सकते बल्कि स्वानुभूति के साहित्य को ही दलित साहित्य कहा जा सकता है। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि की पुस्तक “दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र” की चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी के गैर दलित साहित्यकार दलित साहित्य को यह कहकर खारिज कर देते हैं कि यह तो रोने-पीटने का साहित्य है उनको ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी इस पुस्तक में करारा और तर्कपूर्ण जवाब दिया है।यहगैर दलित साहित्यकारों केसारेप्रतिमानों को बदल देता है। उनके लिए चाँद सुन्दरता का प्रतीक होता है तो हम दलितों के लिए वह रोटी का प्रतीक होता है। उन्होंने कहा कि दलितों को अपना भोग हुआ यथार्थ याजीवन की हकीकत लिखना बहुत मुश्किल होता है। बहुत साहस का काम होता है। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने जैसा जीवन जिया हूबहू वैसा ही लिखा। दलित साहित्य प्रतिरोध का साहित्य है। बहुत प्रेरित करने वाला साहित्य है।

 

एक बार दलित लेखिका सुशीला टाकभौरे ने ओमप्रकाश वाल्मीकि से पूछा कि वे वाल्मीकि टाइटल क्यों लगाते हैं वह तो ब्राह्मण थे। इसपर ओमप्रकाश वाल्मीकि ने कहा था कि आजकल सब जानते हैं कि वाल्मीकि कौन होते हैं। वाल्मीकि एक जाति की पहचान हो गया है। औरपूरे देश में वाल्मीकि जाति को लोग जानते हैं। मुझसे कोई मेरी जाति न पूछे इसलिए मैंने अपने नाम के साथ ही अपनी जाति लगा ली है। सुशीला ने बताया कि उन दिनों आज की तरह मोबाइल की सुविधा नहीं थी इसलिए पत्र व्यवहार होता था। उनके बहुत सारे पत्र मेरे पास हैं। उन्होंने बताया कि आज ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य को विभिन्न विद्यालयों और विश्विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। बहुत से युवा शोधार्थी उन पर शोध कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे ओमप्रकाश वाल्मीकि के समग्र साहित्य को एक जगह ग्रंथावली के रूप में संग्रहित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि ने दलित उत्पीड़नऔर जाति भेद पर बड़ा काम किया है। उन्हें पढने वाले निश्चित ही उनसे प्रेरणा लेंगे।

 

ओमप्रकाश वाल्मीकि की एक कविता का यहां उल्लेख करने उचित होगा  …

चूल्हामिट्टी का

मिट्टीतालाब की

तालाब ठाकुर का।

 

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का।

 

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हलकी मूठ पर हथेली अपनी

फसल ठाकुर की ।

 

कुआं ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत खलिहान ठाकुर का

गली मोहल्ले ठाकुर के

फिर अपना क्या

गाँव?

शहर?

देश?

 

इस कार्यक्रम की रूपरेखा चर्चितदलित साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन युवा दलित रचनाकार रमन टाकिया ने किया। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य को मील का पत्थर बताया। धरमपाल चंचल नेकार्यक्रम की अध्यक्षता की।

 

ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित साहित्य दलित साहित्य का आधारस्तम्भ है। वे बहुमुखी प्रतिभा दे धनी थे। लेखक के अवाला वे अभिनेता भी थे। उन्होंने अनेक नाटकों में अभिनय किया। खुद भी नाटक लिखे। उन्होंने आत्मकथा के अलावा, कहानियां, कविताएं, लेख,आलोचनाएंआदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं में लिखा। उनका लेखन आगे आनेवाली रचनाकार पीढ़ी का मार्गदर्शन और दलित समाज में चेतना का विकास करता रहेगा।


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