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75वें स्वतंत्रता दिवस पर सौगात : सौ साल तक गूंजे आजादी के 100 गीत पहली बार जानेगा राजस्थान, 40 साल में संग्रहित किए स्वाधीनता गीत | Newsforum

©श्याम निर्मोही, बीकानेर, राजस्थान


 

जयपुर | नई पीढ़ी को नहीं पता कि राजस्थान में आजादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिवीरों, स्वतंत्रता सैनानियों कवि-गीतकारों ने क्या किया था कि हर जिले में हजारों लोग स्वाधीनता की लड़ाई में कूद पड़ते थे। नाथूलाल विमल का वह क्रांति गीत.. रक्त रंगे रहते थे जिसके.. वे भाले ओ बाण-कृपाण। खेद..हाय। अब उजड़ गया है.. वहीं हमारा राजस्थान…. गीत सुनने पर जन मन उबाल मारने लगता था।

 

विजयसिंह पथिक की कविता…

 

प्राण मित्रों.. भले ही गंवाना.. पर यह झंडा न नीचे झुकाना.. के स्वर हजारों लोगों के स्वर बन चुके थे। तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री स्वतंत्रता सैनानी जय नाराणय व्यास जैसे युवा.. कल ही तुझ पर गाज गुरेगा.. तेरा सभी समाज गिरेगा.. तख्त गिरेगा, ताज गिरेगा, महल गिरेगा.. राज गिरेगा जैसी कविताओं और गीतों से राजशाही को ललकार रहे थे।

 

आजादी से पहले 100 वर्ष तक राजस्थान के कौने कौने में गूजने वाले ऐसे 100 गीत कविताओं का 75 साल में पहली बार संकलन राजस्थान राज्य अभिलेखागार ने किया है। उन स्वतंत्रता सैनानियों और क्रांति का बिगुल बजाने वाले आजादी के दीवानों ने किन रचनाओं से लाखों जन को फिरंगियों के खिलाफ आंदोलित किया.. आज कोई नहीं जानता। अभिलेखागार ने 40 साल मेहनत से आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर स्वाधीनता के 100 गीतों का संग्रह तैयार किया है। अभिलेखागार के डायरेक्टर डा. महेंद्र खड़गावत ने बताया कि इस 15 अगस्त को ये 100 गीत जनता को पहली बार जानने को मिलेंगे।

आजादी के इन तरानों की कुछ ऐसी हैं विशेषताएं

 

नैनमल सुराणा खुशदिल का गीत ‘नए खून में खोल रही, जीवन की ज्वाला है। आन भिड़े हम लोगों से कोई हिम्मत वाला है?’ सिरोही प्रजामंडल के गीत आजादी चखवा आवजो…… राजस्थान और गुजरात दोनों में गुंजाए जाते थे।

 

प्रभुदयाल जैसों के गीत…… राजस्थानी मां को दूध क्यों लजायो रे.. क्यूं रे गुमायो भेष देश रो,… क्यों गौरव बिसरायो रे… से राजस्थानी युवा रगों में खूब उबाल मारने लगता था।

 

अज्ञात क्रांतिवीर आजाद के नाम से लिखने वाले युवा टोले.. उठो बागड़ी.. बढ़े चलो. जैसे गीतों से हर गली मोहल्ले में युवा टोलियां क्रांति कसम लिए निकल पड़ती थी। गीत के बोल.. कुरबानी का जीवन हो बस.. और मौत हथियार रहे.. बलि वेदी पर जाने वाले.. मरने को तैयार रहें… जैसे गीतों से खून खौल उठता था।

 

कहीं-कहीं अहिंसा के गीत लोगों को भाते थे..

 

गीतकार उमेश की कविता रण निमंत्रण की पंक्तियां ‘ले शस्त्र अहिंसा का कर में वीरों.. डट जाओ जा रण में… सर बांध कफन घर से निकलो… जयघोष करो जन जन में.. दिखला कर जौहर नाम अमर कर जाना.. पहने केसरिया बाना..’ सुनकर युवा मन आंदोलित हो उठते थे।

 

महिला शक्ति के गीत… ओ मेरी नारी जाग जाग…

 

क्रांति के आंदोलन से प्रेरित रचनाकार कृष्णाकुमारी माथुर का गीत ‘.. ओ मेरी नारी। जाग-जाग। सोई चिनगारी। जाग -जाग। ओ प्रलय राग तूं जाग-जाग। ओ महाभाग तूं जाग-जाग।’ जैसे कई गीत महिलाएं गाती थीं और एक से दूसरी नारी शक्ति प्रेरणा लेकर आजादी की लड़ाई में शामिल हुईं।

 

आजादी गीतों के ये थे क्रांति मशाल धारक

 

विजयसिंह पथिक, कन्हैयालाल सेठिया, जय नारायण व्यास, नयनूराम शर्मा, नाथुलाल विमल, शिवराज जोशी, कृष्णाकुमारी माथुर, सोभागचंद्र विद्रोही, हंसराज जैन, भूरसिंह निर्वाण, रामचंद्र मित्तल, गणेशलाल व्यास, प्रभुददयाल, वली मोहम्मद, सिरोही प्रजामंडल, नैनमल सुराणा, भंवरेश, काशीनाथ अक्खड़, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, चौधरी घासीराम, वानरसेना, कप्तान गोपाल, वीरदास, भंवरलाल काला बादल, रमेशचंद ओझा, संत ब्यावर, कौशल्यादेवी वर्मा, सुशीला माथुर सरीखे उस समय के लोकप्रिय लेखकों ने अपनी रचनाओं से जन जन को अंग्रेज जुल्मों के खिलाफ लड़ने का जोश दिया।

 

जयपुर का विशेष गीत: ‘आजाद होगा-होगा

 

तत्कालीन लोकप्रिय रचनाकार चौधरी घासीराम ने जयपुर में अलख जागने के लिए ‘आजाद होगा- होगा’ शीर्षक गीत जन कंठों ने दशकों तक गाया।

 

जयपुर वतन हमारा, जयपुर के हैं हम बच्चे, माता के वास्ते हैं, मंजूर सिर कटाना। अब भेड़-बकरी, बनकर न रहेंगे हम। इस पस्तहिम्मती का होगा कहीं ठिकाना, जयपुर न रह सकेगा, हरगिज गुलाम जाना।

आजाद होगा, होगा.. आया है वह जमाना

 

इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री की कविता ‘जिनगानी रो झरणो’ में उन्होंने आजादी की अलख जगाई, वहीं जयपुर के पंडित ताड़केश्वर शर्मा का गीत.. ‘रण की बिगुल’ बहुत प्रसिद्ध था। उठ चलो आज, सज जंग साज, जयपुर में रण की बिगुल बजी। भर कर हुंकार, हो लो तैयार, सत्याग्रहियों की फौज सजी।


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