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माता-पिता | Newsforum

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़


 

दोहा 

 

मात-पिता की वंदना, करूं मैं बार-बार।

लाये हैं जग में हमें, सहकर पीर हजार।।

 

प्रथम गुरु हैं मात-पिता, जिनसे सीखा चाल।

आ जाये जो विपत तो, रहते बनकर ढाल।।

 

बड़े ईश से मात-पितु, प्रभु भी माथ नवाय।

आदर जो इनका करे, जीवन सफल बनाय।।

 

मात-पिता से ही मिले, हमें नेक संस्कार।

संस्कारी बनकर सदा, माने हम उपकार।।

 

मात-पिता सम कौन हैं, पूछते खान-पान।

बिना खाय वे खुद रहे, रखे हमारा ध्यान।।

 

मात-पिता पालन करै, इक-इक पाई जोड़।

होत युवा सब जात हैं, मात-पिता को छोड़।।

 

मात-पितु को कष्ट न दें, राखें इनकी मान।

टल जायेगी हर व्यथा, हैं ये ईश समान।।

 

मात-पिता के बिन लगे, दुखदायी संसार।

बचपन होता कष्टमय, विपदा करत प्रहार।।

 

देत हैं आशीष सदा, कभी न देते श्राप।

गैरों सा व्यवहार कर, कभी न करना पाप।।

 


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