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प्याऊ घर | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव

परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

 

दोपहरी भीषण तपती गर्मी,

जब आग बरसाता है सूरज।

राहगीर का मुंह सूख जाता,

प्यासे हैं अनुज और अग्रज।।

 

पानी लेकर खड़ा है प्याऊ घर,

आओ अपनी प्यास बुझालो।

मटकी में भरा है शीतल अमृत,

पीने के लिए मग्गा से निकालो।।

 

दूर करो अपनी हृदय का तृष्णा,

मन भर तुम जितना चाहे पीलो।

व्याकुल मन अब तृप्त हो जायेगा,

प्रसन्न होकर चैन की सांस लेलो।।

 

एक आता एक जाता क्षण-क्षण,

मैं देता हूं मनुज को जीवनदान।

मेरे बिना सब-के-सब हैं असंपन्न,

अन्तर्मन का कर लेता हूं पहचान।।

 

जन मत करो मुझे व्यर्थ में बर्बाद,

मैं करता हूं तुम्हारे प्राण की रक्षा।

अभी भी समय है मुझे तुम बचालो,

सभ्य मानवों से करता हूं अपेक्षा।।


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