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सियासत…

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

न जाने किस मिजाज़ का सारा जहान हो गया

ईमानदार आदमी भी बेईमान हो गया

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तहजीब और ज़मीर जिनके कर गए हिजरत कहीं

जिस्म उन हजरात का खाली मकान हो गया

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ये देख कर हैरान हूँ कि वक्त क्या पलटा मेरा

कल जो चापलूस था वो बदज़ुबान हो गया

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मालामाल कर दिया मुझे दे के उम्र भर का गम

महबूब मेरा मुझ पे कितना मेहरबान हो गया

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नफरत की आग ऐसे लगाई सियासत ने कि

हंसता-खेलता शहर पल में वीरान हो गया

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