राजदारी…
©श्याम कुंवर भारती
आशिक ए हुश्न हूं आपका मुझसे पर्दादारी न कीजिए ।
खुली किताब हूं आपके हुजूर मुझसे राजदारी न कीजिए।
दिल का खजाना सारा लूटा दिया आपकी खातिर मैने।
अब कही और किसी से दिल की खरीदारी न कीजिए ।
दिल की खिड़की खोलिए आपका राज जान लूं जरा मैं।
जो है दिल में कह दो मुझसे छुपाने की होशियारी न कीजिए।
घायल हुए कितने आपकी कातिल मुस्कान काला तिल पर।
कर के कत्ल मेरा अपने कातिल हुस्न तरफदारी न कीजिए।
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