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रस रसिक | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव 

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

गन्ने की रस लेकर, आया रस वाला

घर के आंगन से निकली एक बाला

रुको रसवाला, रस का क्या है भाव

शुद्ध तो है, इसमें पानी तो नहीं डाला

 

अभी लाया हूं, कारखाना से निकाल

क्यों पूछ रही हो उटपटांग सवाल

लंबे-लंबे गन्ना से निकला ऊखरस

गर्मी के दिनों में मचाता है धमाल

 

एक गिलास पी लो, निचोड़ कर नींबू

फिर राह चले जाओ, सो जाओ तंबू

ज्यादा ले जाओ बनाना रस पकवान

भूरे-भूरे चौड़ा, संग में फरा का बंबू

 

शौक पूरा होते तक, खाना जी भर कर

मन करे दोबारा तो, बुलाना मुझे घर पर

साइकिल में रस डिब्बा बांधकर आऊंगा

हाथों में बर्तन लिए, खड़ी रहना द्वार पर

 

रस बेचकर अपने परिवार पालता हूं

फटी चादर को मखमल में बदलता हूं

सो जाते हैं किसी रात सभी भूखे पेट

फिर सुबह रस ले लो लोगों से कहता हूं


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