भीतर बसे हैं रावण, राम …
©सरस्वती साहू, (शिक्षिका), बिलासपुर, छत्तीसगढ़
सुनो हे मानव तेरे भीतर
बसे हैं रावण, राम
मर्यादित हो कर्म करो
बन जाओगे श्रीराम
जग में नहीं कोई पैदा होता
शुभ, अशुभ ले नाम
कर्म उन्हें दे जाते हैं
शुभ, अशुभ परिणाम
हँसता क्यों है देख किसी को
अपने ऊपर हँस तू
भीतर तेरे रावण बैठा
नाश उसी का कर तू
टटोल जरा तू अपने भीतर
रावण सेना मिल जाएगा
लोभ, मोह, अभिमान, घृणा
क्रोध, बैर दिख जायेगा
इतने रावण घेरे मन को
चैन कहाँ से पायेगा
गर्त में निशदिन खींचे पग को
पतन को निश्चित जायेगा
सफल न होगा जीवन में
निश्चय ही ठोकर खायेगा
छूट गया हाथों से डोर
तो भारी मन पछतायेगा
संहार करो मन के रावण का
होंगे शुभ -शुभ काम
विजयी बनोगे जीवन में
अमर रहेगा नाम
सुनो हे मानव तेरे भीतर
बसे हैं रावण, राम
मर्यादित हो कर्म करो
बन जाओगे श्रीराम …
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