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अपने असली नायक- नायिकाओं को करें याद | ऑनलाइन बुलेटिन

©विनोद कुमार कोशले

परिचय : बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

 

 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर इतिहास से लें सबक, अपने असली नायक नायिकाओं को करें याद। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। आप सभी को मंगकामनाएं। यह एक अवसर है कि उन महानायक/महानायिकाओं को याद करने का जिन्होंने देश की वर्ण -जाति, असमानता एवं ऊंच-नीच पर आधारित समाज व्यवस्था में शूद्रों, अतिशूद्रों व वंचितों जैसी स्थिति वाली महिलाओं के अधिकारों व उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष किया।

 

सर्वप्रथम महामानव भगवान बुद्ध ने महिलाओं को अपने संघ में प्रवेश देकर उनको पुरुषों के साथ समानता प्रदान की एवं शिक्षक-गुरु बनने का अवसर दिया।

 

हमें याद करना चाहिए महान संत कबीर जी को जिन्होंने जात-पात, ऊंच-नीच के भेदवाव को दूर करने अपनी वाणी के माध्यम से समाज को सन्देश दिया।

 

हमें याद करना चाहिए महान सन्त गुरु घासीदास जी को, जिन्होंने उस समय मानव मानव एक समान का आंदोलन चलाया, जिस समय वर्ण-जाति के आधार पर भेदभाव चरम सीमा पर था।

 

हमें याद करना चाहिए राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जी को। माता सावित्रीबाई फुले ने अनेक कष्ट सहकर भी फातिमा शेख़ के साथ मिलकर महिलाओं के लिए स्कूल खोले एवं अध्यापन कार्य किया। तत्कालीन समय मे वर्ण वयस्था के कारण महिलाओं के लिए शिक्षा लेना वर्जित था। महात्मा फुले और सावित्री माई ने धर्म और समाज के विरोध में जाकर महिलाओं को शिक्षित किया। यही भारत की असली देवी व राष्ट्रमाता है।

 

उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ अपनी आवाज मुखर की। माता सावित्री ने अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर पुणे स्थित भिड़े वाड़ा में 1898 में महिला स्कूल की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने लोगों की काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। बाल विवाह के कारण पुणे में कई महिलाएं छोटी उम्र में ही विधवा हो जाती थी। इसके बाद समाज द्वारा उन्हें बेदखल कर दिया जाता था। ऐसे में महिलाओं के लिए फुले दम्पति ने विधवा घर बनवाया।

 

अगर वह न होती तो आज भी हमारे देश की महिलाएँ काफ़ी पीछे होती। आज भी कई देशों में महिलाओं को शिक्षित होने लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है। माता सावित्री फुले ने महिलाओं के लिए यह प्रयास 200 साल पहले ही शुरू कर दिया था जिसका नतीजा हम आज देखते है।

 

इसके बाद हमें बाबा साहब को याद करना चाहिए। बाबासाहेब डाक्टर बी आर आंबेडकर जी ने महिलाओं के अधिकारों के लिए बहुत कार्य किये। उन्होंने श्रम मंत्री रहते महिलाओं के कार्य के घण्टे कम कराये, मातृत्व अवकाश स्वीकृत करने का नियम बनवाया।महिलाओं के लिए खतरनाक कार्य निषिद्ध करवाये। संविधान निर्माता के रूप में उन्होंने लिंग समानता को संविधान के मूलाधिकारों में जगह दी।

 

संविधान के प्रारूप अनुच्छेद 31 के कुल 5 खंडों में से तीन खंड महिलाओं को आर्थिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक स्तर पर पुरुषों से बराबरी का दर्जा देने पर जोर देता है। पुरुषों में और स्त्रियों में समानता की बात को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करने के लिए डॉक्टर अंबेडकर कितने कटिबद्ध थे। उसका अनुमान इस प्रावधान के सम्बंध में लाए गए संशोधनों और इनके समर्थन में किए गए तर्कों से लगाया जा सकता है।

 

पुरुषों एवं स्त्रियों को समान रूप से शब्दावली को हटाने के लिए 2 संशोधन प्रस्ताव पर डॉक्टर अंबेडकर द्वारा गम्भीर आपत्ति व्यक्त की गई थी। और बाबा साहब के तर्कों से वह आपत्ति खारिज हो गई। भारत के सँविधान में आर्टिकल 39 के 5 खंडों में से 3 खण्ड में समानता के प्रावधान मिल जाएंगे।

 

 

 

भारत के कानून मंत्री के रूप में बाबा साहब ने महिलाओं के अधिकारों के लिए हिन्दू कोड विल संसद में प्रस्तुत किया और जब यह पास नहीं किया गया तो कानून मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। महिलाओं को संपत्ति में हिस्सेदारी दिलाई।

 

बाद में जवाहरलाल नेहरू ने, ‘ हिंदू कोड बिल ‘ को कई हिस्सों में बांटकर, कई एक्ट बनाए, जैसे- ‘हिंदू मैरिज एक्ट 1955’, ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956’, ‘हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम’, हिंदू अवयस्कता और संरक्षक अधिनियम आदि।

 

भारत के सँविधान में महिलाओं के लिए विशेष उपबन्ध करने का प्रावधान आर्टिकल 15(3) करता है। सेवाओं में विशेष भागीदारी के तहत क्षैतिक आरक्षण के रूप में 30 प्रतिशत प्रत्येक वर्गों में प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान हुआ। असमानता के पक्षधरों में कईं बार होरिजेंटल रिजर्वेशन के विरुद्ध रीट दायर किए लेकिन रोक लगाने कामयाब नहीं हुए। मध्यप्रदेश पिंकी असाटी मामला देशभर में फेमस है। किस तरह अनारक्षित सीट 12 में से 10 पदों में ओबीसी, SC-ST महिलाओं का चयन होने के विरुद्ध रीट दायर किए। अंततः बहुजन समाज के महिलाओं की जीत हुई।

 

बाबासाहेब कहते थे कि किसी समाज / समुदाय की प्रगति में उस समाज में हुई महिलाओं की प्रगति से मापता हूँ।

 

हमें इतिहास से सबक लेते हुए वर्तमान में हमारे साथ हो रहे शोषण-अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना होगा। अपने बहुजन नायक नायिकाओं को पहचान कर उनके विचारों के साथ आगे बढ़ना होगा। तभी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना सार्थक होगा।


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