रूस और यूक्रेन युद्ध | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.
कोरोना की तबाही, फिर ओमिक्रोन का डर।
अब रूस और यूक्रेन की तबाही का मंज़र।
जीवन का हर क़दम संभलता नहीं है अब,
डर के साए में, गुज़रने लगा है ये सफऱ।
सुकून से दो पल यहाँ बिताने आये थे।
कर्ज़दार तो नहीं जो क़र्ज़ चुकाने आए थे।
गूँज रही है धमाकों की आवाज़ कानों में,
खामोशी से अश्क़ तो नहीं बहाने आए थे।
वजह कुछ भी हो, बे-वजह न बनाओ।
इंसानियत है अगर ज़िंदा, इंसानो को बचाओ।
तड़प, दर्द, तबाही, के सिवाय कुछ नहीं,
शान्ति चाहिए हमें, अशांति न फैलाओ।
आसमाँ का रंग, अब धुआँ-धुआँ हो गया।
चीख़ आई है, फिर किसी का अपना खो गया।
स्याही भी नहा रही है, ख़ून के समन्दर में,
इस साल में क्या ख़्वाब सजाया, क्या हो गया।
जिस्म के चिथड़े हुए, तो कहीं मकान नहीं रहा,
ज़िन्दगी घने अंधेरे में है, जीने का सामान नहीं रहा,
बच्चे, जवान, बूढ़े फँस के रह गए है, सर-ज़मीन पर
युद्ध से कभी भी, मसले के हल का इमकान नहीं रहा।
युद्ध से कभी भी, मसले के हल का इमकान नहीं रहा।