स्कूल की यादें | Newsforum
©गणेन्द्र लाल भारिया, शिक्षक, कोरबा, छत्तीसगढ़
बाल कविता
बिना स्कूल गए हो गए पहली पास,
कब स्कूल पट खुलेगा बहुत है आस।
घर में रह कर उब गए हैं हम अब,
दोस्त याद है कब मिलें थे हम सब।
विद्यालय में ओ क ख ग का पढ़ाना,
याद आतें हैं साथ में टिफिन करना।
कविता कहानी गाना और पढ़ना,
जोड़ घटाव गुड़ा भाग के सिखना।
पेंसिल रबर के लिए लड़ाना झगड़ना,
घुम हो गई मेडम से डांट पड़ना।
स्कूल न जाने की बहाना बनाना,
छूट गई कब तक घर में है रहना।
घर की पढ़ाई रास मुझे नहीं आई,
अब स्कूल में जाकर पढ़ाना है माई।
मम्मी मम्मी अब मुझे है स्कूल जाना
पापा से मुझे रोज डांट नहीं है खाना।