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बिखरे हुए पल | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©डॉ. वृंदा साखरकर, बहामास

परिचय:- गायनॉकॉलॉजिस्ट, जन्म महाराष्ट्र में हुआ, अमरीका में रहते हैं.


 

 

 

बिखरे हुए पलों को समेटनेकी कोशिश में लगी रहती हुं हमेशा

क्या कुछ नहीं है इन पलोंमे

कड़ी धूप मे प्याउ के ठंडे पानी की मिठास

ठिठुरन भरी सर्दी में पहली सुर्य किरण का आगास

गीली बारिश में गर्म चाय पकौड़ों का उल्हास

कोने में पड़ी हुई है एक उदास अंगड़ाई

उसी की उँगली पकड़ एक आशा है सकुचाई

एक ओर हर्षोल्लास की है रेलचेल

तो दुसरी ओर ज़िल्लत और निराशा का दुखद मेल

बचपन का अल्हड़ पन यौवन का उन्माद

और अब प्रौढ़ावस्था का ठहराव

कहीं कुढती हुई अंधी खाई तो कही खिलखिलाते झरने का बहाव

सभी कुछ बिखरा पड़ा हुआ है  इन पलों में

बिना किसी नियम या आयाम

ना कोई सुर ना ताल

कुछ समेटनेकी कोशिश में

हमेशा कुछ छूट जाता है

जो छुट गया उसी को सोचते हुये

मन आक्रांत रहता है

जो कुछ समेटना चाहती थी

नहीं समेट सकी अब तक

हॉ लेकिन कोशिश अभी जारी है

शायद अगली बार मेरी ही बारी  है

 

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