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शिव विवाह | ऑनलाइन बुलेटिन

©राजेश श्रीवास्तव राज

परिचय– गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश.


 

 

सवैया छन्द

 

हे भोले अविनाशी, कैलाश वासी,

शिव शंभू, बागांभर घट घट वासी।

 

है महिमा तुम्हारी सदा ही निराली,

हे सती के पति सदा त्रिशूलधारी।

दक्ष अहं का मर्दन जब किया,

माता सती ने क्रोध में देह भस्म किया॥

भोले भंडारी ने क्रोध दिखाया,

दक्ष ने कुल का तब नाश कराया।

विचलित होकर सती देह ले जाते,

सुदर्शन से अंग विष्णु जी ने काटे॥

 

माँ सती ने पुनः जन्म जब लिया,

हिमालय, मैना को सम्मान तब दिया।

माता की कीर्ति फैली जग सारी,

गिरिराज सुता ने किया तप भारी॥

शिव को मनाने को चली सुकुमारी,

सप्तर्षी भी आए परीक्षा रचवाई।

जाति न गोत्र न कुल कुछ पता है,

श्मशान वासी के न घर का पता है॥

 

मां का तप परखा ऋषियों ने जैसे,

आशीष दिया शिव मिलेंगे वैसे ।

गौरी लली प्रसन्न तब हुई,

मनवांछित इच्छा पूर्ण हुई जब ॥

ऋषि सब पहुंचे भोले को मनाने,

कैलाश पर्वत दूल्हा सजवाने।

जब विष्णु ब्रह्मा देव गंधर्व आए,

वर को सजवाने आभूषण लाए॥

 

शिवजी के साथी सब श्मशान वासी,

भूत प्रेत सब मरघट के वासी।

आगे सब आए जब दुल्हा सजाने,

भस्म चिता से शिवजी को नहलाने॥

सर्प कलंगी सजाया सर्पों की माला,

बाघछाल लपेट, जटा चंद्र आभा।

नंदी सवारी चले डमरू बजाते,

यह देख देवगण पीछे हो जाते॥

 

बारात चली हिम द्वारे के जैसे ही,

नाचत, गावत भूत प्रेत वैसे ही।

ढप, ढोल मृदंग व झांज बजाते,

घूम घूम कर शिवजी को रिझाते॥

ब्रह्मा नारद हिम द्वार पर आए,

द्वारचार की रस्म निभाएं।

आरती करने मां मैना जब आई,

देख शिवरूप को मैया घबराईं॥

 

जब शिव ने सुंदर रूप सजाया,

मन हर्षित मैना का तब हो पाया।

मां पार्वती ने वरमाला जब डाला,

भोले सदा शिव को सर्वस्व बनाया॥

गूंजा जयकारा ब्रह्मांड में जैसे ही,

पार्वती शिव प्रसन्न हुए वैसे ही।

देवा देव शिव महादेव निराले,

मां पार्वती के संग कैलाश विराजे॥


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