खामोशी …
©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़
यह खामोशी भी अजीब बीमारी है
इससे अछूता नहीं कोई नर- नारी है
यह अकेला ही हजारों पर भारी है
जिसको भी हुआ उसकी मति मारी है
यह खामोशी भी अजीब बीमारी है
आज तुम्हारा तो कल हमारी बारी है
इसका प्रकोप देखो निरंतर जारी है
कितनी ताकत है इसमें दुनिया हारी है
जैसे दुनिया में फैलता कोई महामारी है
यह खामोशी भी अजीब बीमारी है
कुछ ना कहो तो सबकी मति मारी है
मन शांत रखने की यह तो महतारी है
आपको मीठा लगे पर दुनिया को खारी है
चुप रह कर तो देखो कितनी लगती प्यारी हैं
यह खामोशी भी अजीब बीमारी है
करोड़ों लोग रोज करते सवारी है
पता नहीं चुप रहने में क्या ख़ुमारी हैं
दूसरे को मनवादे की गलती हमारी है
शांत रह कर देखो दुनिया तुम्हारी है
यह खामोशी भी अजीब बीमारी है …
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