कुछ ना कुछ बात होती है | Newsforum
©नीरज यादव, चम्पारण, बिहार
शहर में भी धोबी घाट होती है।
कड़ी धूप में भी बरसात होती है।
हर एक कवि की कविता में,
कुछ ना कुछ बात होती है।
एक ही दुनियाँ में कहीं दिन तो कहीं रात होती है।
कोई दु:ख झेलता तो किसी के ऊपर खुशियों की बरसात होती है।
कहीं कुछ हो या ना हो, पर हर कवि के अन्दर।
कुछ ना कुछ बात होती है।
राजनीति में तो हमेशा धर्म और जात होती है।
चुनाव में सिर्फ और सिर्फ बात होती है।
नेता कुछ करें या ना करें लेकिन हर कवि के अन्दर,
कुछ ना कुछ बात होती है।
जीवन की पढ़ाई माता-पिता से ही शुरुआत होती है।
हमारे शिक्षक ही हमारे क़लम की दवात होती है।
शिक्षकों की डांंट और बात सुनकर बनते है हम कवि,
और हमारे अन्दर भी कुछ ना कुछ बात होती है।
मरने के बाद हमारी जगह श्मशान घाट होती है।
गुलाब के फूलों में हमेशा काँटे होती है।
हमेशा गमकने के लिए एक कवि में,
कुछ ना कुछ बात होती है।