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कभी जीन्स तो कभी हिजाब | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़ 

परिचय-, मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

 

कभी जीन्स तो कभी हिजाब पे, पाबन्दी लगाई जाती है।

ये सारी योजनाएँ, सिर्फ़ नारियों के लिए बनाई जाती है।

 

आख़िर कब तक, हम सब पे ये पाबन्दी लगाई जाएगी।

कभी हजूम में तो कभी अकेले में, दुत्कार लगाई जाएगी।

 

कभी तो हमें भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक, जीने दिया जाए

बहुत हो चुका ये तमाशा, तमाशे को अब बन्द किया जाए।

 

जीन्स पहनने देना है या नहीं, हिजाब पहनने देना है या नहीं

इतना ज़रा बता दो, हमें इस दुनिया में जीने देना है या नहीं।

 

हम लक्ष्मी, हम दुर्गा, हम फ़ातिमा, मरियम भी हम।

हमें न सिखाओ सहनशीलता, हमने तुम्हें दिया जन्म।

 

बात कड़वी है, तो अपनी दकियानूसी बातों से बाज़ आ जाओ

हमें उलझा कर इन सब में, अपना नया रास्ता न बनाओ।

 

राजनीति के खेल में, हमेशा हमें खिलौना बनाया जाता है।

कभी लगा लेते हैं गले, तो कभी हमें वैश्या बताया जाता है।

 

चार दिवारी से हमारा निकलना , क्या तुम्हें भाता नहीं।

हम में तुम में फ़र्क़ नहीं, ये बात तुम्हारी समझ में आता नहीं

 

जिस दिन हम हक़ की ख़ातिर, चंडी और काली बन जाएँगे।

याद रखना उसके बाद सिर्फ़ हम ही तुम्हें याद आएँगे।

याद रखना उसके बाद सिर्फ़ हम ही तुम्हें याद आएँगे।

 


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