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बाँझपन एक कलंक l ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई

परिचय– बिहार शरीफ़, नालंदा में जन्मी और पली-बढ़ी लेकिन मुंबई में निवास हैं, शिक्षा– एमसीए, एमबीए, आईटी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर, राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन.


 

एक औरत माँ बने तो जीवन सार्थक

अगर माँ न बने तो जीवन ही निरथर्क,

किसने कहा है ये, कहाँ लिखा है ये,

कलंकित बोल-बोल जीवन बनाते नरक।

 

बाँझ बोलकर हर कोई चिढ़ाते,

शगुन-अपशगुन की बात समझाते।

बंजर ज़मीं का नाम दिया है मुझे,

पीछे क्या, सामने ही मेरा मज़ाक़ उड़ाते।

 

ममत्व का पाठ मैं भी जानती,

हर बच्चे को अपना मानती,

कोख़ से जन्म दूँ, ज़रूरी नहीं,

लहू का रंग मैं भी पहचानती।

 

आँचल में मेरे है प्यार भरा,

ममता की मूरत हूँ देख ज़रा,

क़द्र जानूँ मैं बच्चों की,

नज़र से मुझे ज़माने न गिरा।

 

कलंक नहीं हूँ इतना ज़रा बता दूँ,

समाज को एक नया पाठ सीखा दूँ,

बच्चा न जन्म दे सकी तो क्या,

समाज पे बराबर का हक़ मैं जता दूँ।

समाज पे बराबर का हक़ मैं जता दूँ।


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