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सूरमा | ऑनलाइन बुलेटिन

©हरीश पांडल, विचार क्रांति, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

कुछ सूरमा हवा में

तलवार चला रहे हैं ?

खुद को खुद की

बहादुरी दिखा रहे हैं।

अपमानित हो रहा

समाज यहां ?

वे सूरमा स्वयं को

बघवा बता रहे हैं।

कुछ सूरमा हवा में

तलवार चला रहे हैं

पहचान हमारे मिटाए

जा रहे हैं ।

सम्मान हमारे घटाए

जा रहे हैं।

धरोहर हमारे ढहाए

जा रहे हैं।

बस्तियां हमारी उजाड़े

जा रहे हैं।

खून के आंसु रुलाए

जा रहे हैं।

समाज को मूर्ख बनाए

जा रहे हैं।

कुछ लोगों को मतलब

नहीं है ऐसे कृत्यों से

वे हवा में तलवार

चलाए जा रहे हैं।

खुद की बहादुरी खुद

को दिखा रहे हैं।

आरक्षण हमारे घटाए

जा रहे हैं।

नौकरियां हमारे छीने

जा रहे हैं।

ऐसे ज्वलंत मुद्दों को

उठाने के बदले

समाज के मुखिया दलाली

कर रहे हैं।

दिवाला समाज का निकाल

रहे हैं।

और अपनी दिवाली

मना रहे हैं।

अन्याय का विरोध तो

करते नहीं ?

वे अपनी संपत्ति बना

रहे हैं।

बनकर सूरमा हवा में

तलवार चला रहे हैं

खुद को खुद की

बहादुरी दिखा रहे हैं

कुछ सूरमा हवा में

तलवार चला रहे हैं …..


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