संविधान के बदौलत, सबकुछ मिला | ऑनलाइन बुलेटिन
©संतोष जांगड़े
परिचय-बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़.
जो भी मिला हमें, जितना मिला हमें,
संविधान के बदौलत, सबकुछ मिला हमें।
नौकरी मिली हमें, शिक्षा मिली हमें,
घूमने की आजादी, रोजगार भी मिला।
घर-बार शान-ओ-शौकत, ईज्जत मिला हमें।
जो भी मिला हमें, जितना मिला हमें,
संविधान के बदौलत, सबकुछ मिला हमें।
आततायियों ने मिलकर, हक हमारे छीने थे,
काले-कारनामों को, पुरखों ने गिने थे।
सब समान है मानव, एक समान जीने थे,
असमान जीवन के, जो भी समर्थक हैं,
समुद्र मंथन के, जहर उनको पीने थे।
उनसे शिकायत है, उनसे गिला हमें।
जो भी मिला हमें, जितना मिला हमें,
संविधान के बदौलत, सबकुछ मिला हमें।
बाबा भीमराव ने कष्टों को झेलकर,
अपने बेटे के घर में, शव से नाता तोड़कर,
खुद को महापुरुषों के, जीवन से जोड़कर,
अपने बुद्धि के बल पर, हक दिया दिला हमें।
जो भी मिला हमें, जितना मिला हमें,
संविधान के बदौलत, सबकुछ मिला हमें।
ऊँच-नीच, भेदभाव सदा ही टिका रहे,
मनुवादी सोंच है, बहुजन बिका रहे,
गर्व करो जाति पर, हमको सीखा रहे,
बिखरे समाज का, आईना दिखा रहे,
अंधविश्वास की जड़ को, देना हिला हमें
जो भी मिला हमें, जितना मिला हमें,
संविधान के बदौलत, सबकुछ मिला हमें।