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आने वाली पीढ़ियां तुम्हें लानत भेजेगी | newsforum

©संजीव खुदशाह
रायपुर, छत्तीसगढ़

 

लेखक देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

 


 

 

वे पूछेंगे कि जब करोना वायरस की बीमारी महामारी का रूप ले रही थी। तब तुम मसखरे के कहने पर थालियां और तालियां बजा रहे थे। लानत है तुम पर।

 

वह पूछेंगे महामारी के इस माहौल में तुम लाइट बुझाकर, दीया-बाती जलाने का खेल खेल रहे थे। और देश को हजारों साल और पीछे ढकेल रहे थे। लानत है तुम पर।

 

वह पूछेंगे जब पूरा देश महामारी से पीड़ित था। तब तुम हिंदू- मुस्लिम का खेल- खेल रहे थे। बीमारी का ठीकरा किसी एक तबके पर थोप रहे थे। लानत है तुम पर।

 

वे पूछेंगे शर्म नहीं आई जाहील पुरखों, जब तुमने ताली और थाली बजाई होगी। शर्म तो तुम्हें तब भी नहीं आई होगी जब तुमने लाइट ऑफ करके दीया-बाती को जलायी होगी।

 

थोड़ा तो साइंस की इज्जत रख ली होती, जिसकी बदौलत तुम हाथ पर मोबाइल रखे हुए थे।

 

थोड़ा आने वाली पीढ़ी के बारे में सोच लिए होते, ऐसी जाहिल मिसाल कायम करने से पहले।

 

ऐसे निकम्मे, तोहमपरस्त (अंधविश्वासी), इडियट पुरखे बनने का हक किसने दिया है तुम्हें।

हम तुम्हें लानत भेजते हैं।

 

 

 


 

 

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