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मन के जीते जीत | Onlinebulletin

©लोकेश्वरी कश्यप, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

 

 

बाधाएं तो आती है, वह आती हैं और आती रहेंगी l

तू डर मत, तू रूक मत, बस अपना

कर्म करते चल l

मन को बना ले सरिता, बाधाओं के बीच रास्ता बनाते चल l

क्योंकि मन के हारे हार है मन के जीते जीत l

 

 

 

जरूरी नहीं जीवन में तुझे शीतल, मंद, सुगंधित समीर मिले l

सामने गर्म पवन, सर्द हवाएं, आंधी तूफानों के चक्रवात भी आएंगे l

तू हिम्मत न हार, मन छोटा ना कर, मन को अपने सुमेरु बना l

क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत l

 

 

 

क्या हुआ जो तू ठोकर लगने से औरों की तरह गिर गया l

गिरने में कोई बड़ी बात नहीं, फिर से संभाल और इतिहास बना l

जिन पत्थरों से तुझे ठोकर लगी, उन्हें ही सफलता की सीढ़ी बना l

क्योंकि मन के हारे हार है मन के जीते जीत l

 

 

उलझनों के भंवर में, अगर फंसी है तेरी जीवन नैया l

इधर – उधर के लहरों के थपेड़े भी जब तुझे विचलित करने लगे l

तब भय छोड़ हिम्मत से कर सामना, मन को तू अपने पतवार बना l

क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत l

 

 

जीवन एक संघर्ष है,तू इससे कब तक बचेगा और भागेगा l

हिम्मत से कर सामना, मन को कस, कर इसपर अपना वश l

अपनी सफलता की कहानी, स्वयं अपने कर्मों से तू लिख l

क्योंकि मन के हरे हार है, मन के जीते जीत l

 

 


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