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वीर की मां | ऑनलाइन बुलेटिन

©कविता शुक्ला


 

तू जिस गोदी में खेला था, उसी में तेरा साया था

तू कहता था मैं आऊंगा, तिरंगा लेके आया था।

तू कहता था मैं आऊंगा, तुझे सारा जग घुमाऊंगा,

मां बैठुंगा पास तेरे, हाथ से रोटियां खाऊंगा।

तू आया है ये भी सच है, इसे मैं ना नहीं कहती,

मगर आया तू कुछ ऐसे, रोए बिन रह नहीं सकती ।

तुझे कहते हैं सब वीरा, स्वर्णों सा नाम है तेरा

मगर जब नाम लेती हूं, तड़प जाता है मन मेरा।

 

किसी से कह नहीं सकता, कहे बिन रह नहीं सकता

वीर का बाप हूं बेटा, मैं खुलके रो नहीं सकता।

तू जब भी घर में आता था, हर कोना खिल सा जाता था

मेरे पैरों को छूता था, ये कण-कण मुस्कराता था।

तेरी मां मुझसे कहती है, अब ये अहसास तब होगा,

जब पूछेगा मां  हो कैसी, उसके हाथों को चूमेगा।

 

तेरी यादें है अब दिल में, मगर ख़ुश है कही मन में

वीर की मां वो कहलाएगी, जब तक सांस है तन में।

जय हिंद – जय भारत


 

 

सौजन्य-

©रामभरोस टोण्डे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़   


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