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बहुत मौसम सुहाना है | ऑनलाइन बुलेटिन

©दीपक मेवाती

परिचय-, मेवात, हरियाणा


 

 

 

बहुत मौसम सुहाना है।

तूने मुझको ना जाना है।

मिलेंगे छुपके चुपके से

अपना दुश्मन जमाना है।

 

कोई फिर बात तुम करना

कोई फिर बात मैं कर दूं।

मैं फ़िर बन जाऊंगा जोकर

मेरा मक़सद हंसाना है।

 

यूँही बातों ही बातों में

थोड़ी सी रूठ तुम जाना

करूँगा हर जतन फिर मैं

मेरा मकसद मनाना है।

 

थोड़ी गंभीर तुम होना

थोड़ा गंभीर मैं भी हूँ

करेंगे बाद कि बातें

तुम्हें घर मुझको लाना है।

 

तुमको आगोश में लुंगा

तुम भी यूँही समा जाना

रह ना पाऊँ बिना तेरे

मेरा तू ही ठिकाना है।

 

 

मेरे ग़म दूर होते हैं

जब भी तू पास आती है

मैं हंसता हूँ बिना हिचके

खुशी का तू खजाना है।

 

मैं खोया रहता हूँ अक्सर

तेरे ही ख्यालों में

मैं भुला हूँ सभी कुछ अब

मैं तेरा ही दीवाना हूँ।

 

तू हो जाये सिर्फ मेरी

मैं हो जाऊं सिर्फ तेरा

मेरी इतनी सी चाहत है

मेरा इतना फसाना है।

 

आओ हम मिलें खुलकर

हो जाएं एक दूजे के

जले चाहे ज़माना अब

हमें सबको बताना है।

 

बहुत मौसम सुहाना है

तूने मुझको ना जाना है

मिलेंगे छुपके चुपके से

अपना दुश्मन जमाना है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

2.

 

बड़ा बेचैन-सा हूँ मैं…

 

बड़ा बेचैन-सा हूँ मैं

बड़ी बेताब तुम भी हो

अगर हूँ खास मैं तेरा

तो मेरा राज तुम भी हो।

 

अगर जो बात मैं तेरी

मेरा हर लफ़्ज तुम भी हो

धड़कती जो मेरी सांसे

तो मेरी नब्ज़ तुम भी हो।

 

 

मेरा हर पल तेरे ख़ातिर

तेरा हर पल तो मैं ही हूँ

अगर जो आज तू मेरा

तो तेरा कल तो मैं ही हूँ।

 

तुम्हें अपना मैं कहता हूँ

तुम मुझे जान कहती हो

हो गुरुर तुम मेरा

तुम मुझे मान कहती हो।

 

तुम्हें देखूं संवरता हूँ

मुझे देखो संवरती हो

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ

तुम मुझे प्यार करती हो।

 

 

 

3.

 

इश्क की हर रिवायत निभाई है जी…….

 

इश्क की हर रिवायत निभाई है जी

पत्र पढ़कर के प्रति जलाई है जी।

गीत भी हैं लिखे, हैं ग़जल भी कही

उसके संग-संग में सब गुनगुनाई हैं जी

इश्क की हर रिवायत निभाई है जी।

 

फोन नम्बर ज़बानी मुझे याद है

उसकी सारी कहानी मुझे याद है

नाम उसका लिखा था जो रंग लाल से, उसको खूं की स्याही बताई है जी

इश्क की हर रिवायत निभाई है जी।

 

जन्म का दिन मैं उसका नहीं भूलता

उसके आगे मुझे कुछ नहीं सूझता

टक-टकी जो लगाकर था देखा उसे, उसने देखा तो नजरें चुराई हैं जी

इश्क की हर रिवायत निभाई है जी।

 

पसंद-न-पसंद उसकी सब याद है

उसकी गूंठी के नग का रंग याद है

घूमना-फिरना हमने बहुत था किया, कुर्ती प्यारी सी उसको दिलाई  है जी

इश्क की हर रिवायत निभाई है जी।

 

सुबह शाम की खैर लेता था मैं

जब भी मिलता था चॉकलेट देता था मैं

जब बहाना कोई न रहा मिलने का

घर पे झूठी कहानी बनाई है जी

इश्क की हर रिवायत निभाई हैं जी

पत्र पढ़कर के प्रति जलाई है जी।


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