सदियों से मजदूर हैं हम | Newsforum
©श्याम निर्मोही, बीकानेर, राजस्थान
हल भी चलाएं और बीज भी बोए ।
सबको खिलाए और हम भूखे सोए ।।
कितने लाचार मजबूर हैं हम ।
क्योंकि सदियों से मजदूर हैं हम….
छैनी-हथौड़ा उठाएं पत्थर बजरी ढोएं ।
भव्य महल बनाएं और झोपड़ी में रोएं ।।
श्रम की थकन से चूर हैं हम ।
क्योंकि सदियों से मजदूर हैं हम…..
कल-पुर्जे चलाए और धातु भी गलाएं ।
अपने पसीने से नहरें और बांध बनाएं ।।
युगों से टूटा हुआ गुरुर हैं हम ।
क्योंकि सदियों से मजदूर हैं हम….
गांव और शहरों को स्वच्छ बनाएं ।
फिर अपनी बस्तियां क्यों दूर बसाएं ।।
शिक्षा और विकास से दूर हैं हम ।
क्योंकि सदियों से मजदूर हैं हम….
परिचय : एमए (हिंदी), बीएड, यूजीसी नेट, प्रकाशन व प्रसारण- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। ऑनलाइन काव्य पाठ की प्रस्तुति। दूरदर्शन पर परिवार नियोजन पर आधारित टेलीफिल्म ‘पहल’ में गीत लेखन, आकाशवाणी प्रसार भारती केंद्र बीकानेर से साहित्यिक वार्ता का प्रसारण। पुस्तक- श्रीहणुत अमृतवाणी, सुलगते शब्द, सम्मान- भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान 2017, स्वर्ण भाप व महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्रालय भारत सरकार द्वारा डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रीय पुरस्कार 2020, स्वर्ण भाप और भारतीय कला संस्कृति व भाषा विज्ञान विभाग, दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय हिंदी रत्न सम्मान 2020 से सम्मानित।