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क्या खोया; क्या पा लिया …

©डॉ. सत्यवान सौरभ, हरियाणा 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट


 

सच्चे पावन प्यार से, महके मन के खेत !

दगा झूठ अभिमान से, हो जाते सब रेत !!

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किस से बातें वो करे, किस से करे गुहार !

भटकी राहें भेड़ जो, त्यागे स्व परिवार !!

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मंत्र प्यार का फूँकते, दिल में रखते घात !

रिश्ते क्या बेकार है, करना उन से बात !!

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नेह-स्नेह सूखे सभी, पाले बैठे बैर !

अपने ताबूत ठोकते, देते कन्धा गैर !!

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क्या खोया; क्या पा लिया, जीते जी के ऐब !

ज्यों आये त्यों चल दिए, नहीं कफ़न में जेब !!

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बुझ पाए कैसे भला, ये नफरत की आग !

बस्ती-बस्ती गा रही,फूट-कलह के राग !!

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सील गए रिश्ते सभी, बिना प्यार की धूप !!

धुंध बैर की छा रही, करती ओझल रूप !!

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