ज़ख्म हो जहां वहीं पे चोट लगती है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा
मुश्किलें लाख हों उम्मीद कहां मरती है
ये वो शमा है जो तूफानों में भी जलती है
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ये बात सच है चाहे मानो या न मानो तुम
जहां दवा न करे, दुआ असर करती है
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चीर देती है फिर वो आसमां का सीना भी
किसी गरीब के दिल से जो आह निकलती है
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हमेशा दो कदम आगे ही रहती है मुझसे
मेरी किस्मत न जाने कितना तेज चलती है
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बचाओ कितना भी मगर ये होता है अक्सर
कि ज़ख्म हो जहां वहीं पे चोट लगती है
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