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ज़ख्म हो जहां वहीं पे चोट लगती है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

मुश्किलें लाख हों उम्मीद कहां मरती है

ये वो शमा है जो तूफानों में भी जलती है

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ये बात सच है चाहे मानो या न मानो तुम

जहां दवा न करे, दुआ असर करती है

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चीर देती है फिर वो आसमां का सीना भी

किसी गरीब के दिल से जो आह निकलती है

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हमेशा दो कदम आगे ही रहती है मुझसे

मेरी किस्मत न जाने कितना तेज चलती है

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बचाओ कितना भी मगर ये होता है अक्सर

कि ज़ख्म हो जहां वहीं पे चोट लगती है

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