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वैश्या… एक गाली | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़ 

परिचय– बिहार शरीफ़, नालंदा में जन्म, मुंबई में निवास, शिक्षा- एमसीए, एमबीए, आईटी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

 

हर रात बदनाम गलियों का नज़ारा,

ख़ौफ़ व दहशत में भी लगता प्यारा।

हर रात नए रूप में सजी दुल्हन,

सुबह होते ही बन जाती उतरन।

सब कुछ होकर भी, झोली है ख़ाली,

कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

 

न ये रास्ता अपना, न ही ये मन्ज़िल,

निशान छोड़ गया, दिखा कर साहिल।

लड़की होने पे, बहुत खुशियां मनाते,

बेड़िया पहनाकर, मर्दों में नचाते।

तन्हाई में यही सवाल है सवाली।

कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

 

बाहरी रूप को हुस्न ने सजा रखा है,

ग़म की सिलवटों को मिटा रखा है,

समाज में जीने का नहीं अधिकार,

जीना भी चाहूं तो मिलती है दुत्कार।

जाने कैसा ये भ्रम सबने है पाली,

कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

 

जिस्म का पुर्ज़ा-पुर्ज़ा टूट जाता है,

हवस का पुजारी गले लगाता है।

छीन जाता है रूह, जिस्म से इस क़दर,

मुझमें बेजान लाश की हो क़ब्र

लहू के क़तरे से मनाते हैं दीवाली

कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???


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