होते हो तुम क्यों नाराज | ऑनलाइन बुलेटिन
©गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
परिचय– गजनपुरा, बारां, राजस्थान
होते हो तुम क्यों नाराज, मेरे नहीं निभाने पर रस्म।
दोषी भी तो तुम ही हो, मेरे नहीं निभाने पर रस्म।।
होते हो तुम क्यों——————।।
मदद क्यों नहीं की मेरी, मैं जब मुसीबत में फंसा था।
मुझको देखकर भी भूखा, तुमको नहीं आई शर्म।।
होते हो तुम क्यों——————-।।
मुझको क्यों दी नहीं पनाह, भटकता था जब दर-दर।
दुनिया वालों ने नहीं मुझ पर, तुमने ही किये थे जुल्म।।
होते हो तुम क्यों——————–।।
लगाया क्यों नहीं तुमने, मुझको सीने से कभी भी।
तुम ही हंसते थे बहुत, देखकर कल को मेरे जख्म।।
होते हो तुम क्यों——————–।।
आज देते हो दुहाई, तुम रिश्तों की क्यों मुझको।
तुमने ही तो तोड़ा था, यह रिश्ता और यह रस्म।।
होते हो तुम क्यों———————।।