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यह कलेक्टर मेकअप क्यों नहीं करती | ऑनलाइन बुलेटिन

@श्रीमती रानी सोयामोई

परिचय– जिला कलेक्टर (दण्डाधिकारी), मलप्पुरम


मलप्पुरम, जिला कलेक्टर श्रीमती रानी सोयामोई ने कलाई घड़ी के अलावा कोई आभूषण नहीं पहना था। बच्चों को सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात का था कि उन्होंने फेस पाउडर का भी इस्तेमाल नहीं किया। वह केवल एक या दो मिनट के लिए बोली, लेकिन उसके शब्द दृढ़ संकल्प से भरे हुए थे। इसके बाद, बच्चों के सवालों के उत्तर उस कलेक्टर ने दिए।

 

 

मेरा नाम रानी है।

सोयामोई मेरे परिवार का नाम है।

मैं झारखंड की मूल निवासी हूँ।

कुछ और पूछना है?

 

(एक दुबली-पतली लड़की दर्शकों में से उठ खड़ी हुई)

 

पूछो, बच्ची?

 

“मैडम, आप अपने चेहरे पर कोई मेकअप क्यों नहीं लगाती?”

 

कलेक्टर का दमकता चेहरा अचानक पीला पड़ गया। उसके पतले माथे पर पसीना छूट गया।

उसके चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ गई।

दर्शक अचानक चुप हो गए।

उसने टेबल पर रखी पानी की बोतल खोली और थोड़ा पानी पिया।

उसने बच्ची को बैठने का इशारा किया।

फिर वह धीरे-धीरे बोलने लगी-

 

इस बच्ची ने एक परेशानी में डालने वाला प्रश्न पूछा।

यह कुछ ऐसा है जिसका उत्तर एक शब्द में नहीं दिया जा सकता।

मुझे जवाब में आपको अपनी जीवन कहानी बतानी है।

मुझे बताएं कि क्या आप मेरी कहानी के लिए अपना कीमती दस मिनट अलग रखने को तैयार हैं?

 

तैयार …

 

ठीक है।

मेरा जन्म झारखंड के एक आदिवासी इलाके में हुआ था।

(कलेक्टर ने रुककर दर्शकों की ओर देखा)

मेरा जन्म कोडरमा जिले के “अभ्रक” खदानों से भरे आदिवासी क्षेत्र में, एक छोटी-सी झोपड़ी में हुआ था।

मेरे पिता और माता खनिक थे।

मेरे दो बड़े भाई और एक छोटी बहन थी।

हम सभी उस छोटी-सी झोंपड़ी में रहते थे जो बारिश होने पर लीक हो जाती थी।

 

मेरे माता-पिता खानों में मामूली मजदूरी पर काम करते थे, क्योंकि उन्हें दूसरी नौकरी नहीं मिली।

यह बहुत ही गन्दा काम था।

 

जब मैं चार साल की थी, मेरे पिता, माता और दो भाई विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त थे।

उस समय उन्हें नहीं पता था कि खदानों में घातक अभ्रक की धूल के कारण यह बीमारी हुई है।

 

जब मैं पाँच साल का थी, मेरे भाइयों की बीमारी से मृत्यु हो गई।

 

(एक छोटी-सी आह के साथ कलेक्टर ने चुप हो, आँसुओं से भरी अपनी आँखें मूंद लीं)

 

अधिकांश दिनों में हमारे आहार में पानी और एक या दो रोटियाँ होती थीं।

मेरे दोनों भाई गंभीर बीमारी और भुखमरी के कारण इस दुनिया से जा चुके थे।

मेरे गांव में डॉक्टर नहीं थे। स्कूल जाने वाले लोग भी नहीं थे। क्या आप ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं जहां स्कूल, अस्पताल और शौचालय न हो?

बिजली भी न हो?

 

एक दिन जब मैं भूखी थी, मेरे पिता मुझे पकड़ कर लोहे की चादरों से ढकी एक बड़ी खदान में खींच कर ले गए। यह एक कुख्यात अभ्रक की खदान थी।

एक प्राचीन खदान, जिसे गहराई में खोदा गया था। मेरा काम नीचे की छोटी गुफाओं से रेंगना और अभ्रक अयस्क इकट्ठा करना था।

यह काम, केवल दस साल से कम उम्र के (छोटे) बच्चों से ही संभव है।

उस दिन…

जीवन में पहली बार…

मैंने पेट भर खाया…

लेकिन सारा उल्टी कर दिया।

 

जब मैं पहली कक्षा में थी, तब मैं अँधेरे कमरों में अभ्रक सूँघ रही थी और ज़हरीली धूल में साँस ले रही थी।

 

दुर्भाग्यपूर्ण बच्चों के लिए कभी-कभार भूस्खलन में मर जाना असामान्य नहीं था।

और कभी-कभी कुछ घातक बीमारियों से।

 

यदि आप दिन में आठ घंटे काम करते हैं, तो आप कम से कम एक रोटी तो कमा लेंगे।

मैं भूख और भुखमरी के कारण हर दिन बेहद कमजोर और निर्जलित (dehydrated) थी।

 

एक साल बाद ही मेरी बहन भी खदान में काम पर जाने लगी।

जैसे ही मैं थोड़ी बेहतर हुई, मेरे पिता, माँ, बहन और मैंने एक साथ काम किया और एक ऐसे बिंदु पर आ गए जहाँ हम बिना भूख के रह सकते थे।

 

लेकिन भाग्य हमें दूसरे रूप में परेशान करने लगा था। एक दिन जब मैं तेज बुखार के कारण काम पर नहीं जा पाई थी, अचानक बारिश हो गई। खदान के बेस पर मजदूरों के सामने खदान गिरने से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई।

इनमें मेरे पिता, माता और बहन भी थे।

भाई पहले ही- बीमारी से…

 

(कलेक्टर की दोनों आँखों से आँसू बहने लगे।)

(दर्शकों में हर कोई साँस लेना भी भूल गया)

(बहुतों की आँखों में आँसू भर आए)

 

मुझे याद है कि मैं केवल छह साल की थी।

 

अंतत: मैं सरकारी अगती मंदिर पहुंची।

वहां मेरी शिक्षा हुई।

मैं अपने गांव से वर्णमाला सीखने वाली पहली व्यक्ति थी।

 

अंत में यहाँ आपके सामने कलेक्टर है।

 

आप सोच रहे होंगे कि इसका, इस बात से क्या संबंध है कि मैं मेकअप सामग्री का इस्तेमाल नहीं करती?

(वह जारी रही, दर्शकों की ओर देख रही थी…)

 

…तब मुझे एहसास हुआ कि उन दिनों अंधेरे में रेंगते हुए मैंने जो सारा अभ्रक इकट्ठा किया था, उसका इस्तेमाल मेकअप उत्पादों पर किया जा रहा था।

अभ्रक प्रथम प्रकार का फ्लोरेसेंट सिलिकेट खनिज है।

 

…कई बड़ी कॉस्मेटिक कंपनियों द्वारा पेश किए जाने वाले खनिज मेकअप में, सबसे रंगीन, बहुरंगी अभ्रक है, जो 20,000 छोटे बच्चों की जान जोखिम में डालकर आपकी त्वचा को चमकदार बनाते हैं।

..गुलाब की कोमलता.. उन(बच्चों) के जले हुए सपनों से, उनके टूटे हुए जीवन और चट्टानों के बीच कुचले हुए उनके मांस और रक्त से आपके गालों पर फैल जाती है।

 

लाखों डॉलर मूल्य का अभ्रक अभी भी बच्चों द्वारा खदानों से निकाला जाता है। आपकी सुंदरता को बढ़ाने के लिए।

 

अब तुम मुझे बताओ!

 

मैं अपने चेहरे पर मेकअप कैसे लगाऊं?

मैं पेटभर कैसे खा सकती हूँ?

भूख से मरे अपने भाइयों की याद में पेट भरूँगी? हमेशा फटे कपड़े पहनने वाली अपनी माँ की याद में मैं महंगे रेशमी कपड़े कैसे पहनूँ?

 

सभी श्रोता अनजाने में खड़े हो गए।

जब वे बाहर निकलीं,

बिना मुँह खोले, एक छोटी-सी मुस्कान लेकर उन्होंने अपना सिर ऊपर उठा लिया।

उनका चेहरा उनकी आँखों से टपक रहे गर्म आँसुओं से भीगा हुआ था।

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अगर आप कभी

कुछ महिलाओं को

फेस पाउडर, क्रीम, लिपस्टिक से भरी हुए देखें, तो उन्हें दोष न दें।

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इन उत्पादों के विज्ञापनों से करोड़ों कमाने वाली अभिनेत्रियों को भी दोष न दें।

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और उत्पादकों को तो कतई नहीं।

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(झारखंड में अभी भी उच्चतम गुणवत्ता वाला खनिज अभ्रक खनन किया जाता है। 20,000 से भी अधिक छोटे बच्चे न्यूनतम मजदूरी में, बिना स्कूल गए वहां काम करते हैं। अभी भी उनमें से कुछ भूस्खलन से और कुछ बीमारियों से मर जाते हैं।)

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(संपादित)


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