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मैं ही क्यों उनको लिखूं | ऑनलाइन बुलेटिन

©गुरुदीन वर्मा, जी.आज़ाद

परिचय– गजनपुरा, बारां, राजस्थान


 

 

मैं ही क्यों उनको लिखूं, पहल करके कोई खत।

उनको भी तो होगी, मुझसे कुछ तो मुहब्बत।।

मैं ही क्यों उनको लिखूं————–।।

 

 

वो तो मुझसे बड़े हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए।

छोटे को कभी दिल से, दूर नहीं करना चाहिए।।

भूल हो जाये कभी गर, ऐसी तो नहीं हो नफरत।

मैं ही क्यों उनको लिखूं ——————–।।

 

 

मेरा भी होगा सपना, समझते मुझको नहीं क्यों।

मुझको भी तो हंसने दे, आजादी मुझको नहीं क्यों।।

मुझको भी तो काम मेरे, पूरे करने की है जरूरत।

मैं ही क्यों उनको लिखूं ———————–।।

 

 

मुझसे मतलब क्या उनको, नहीं है कुछ भी अब तो।

याद क्या आती नहीं है, उनको मेरी कुछ भी अब तो।।

निभाते क्यों नहीं वो रस्म, उनको क्यों है ऐसी गफलत।

मैं ही क्यों उनको लिखूं————–।।


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