अनुभूति होगी गर्व की | ऑनलाइन बुलेटिन
©सोनू खण्डेलवाल
बड़ी धूम होती है हर तरफ देश में लोकतंत्र के इस पर्व की
महान देश महान संविधान
अनुभूति होगी ही गर्व की
स्वतन्त्रता के बलिदानियों का सिर भी फख्र से ऊंचा उठ जाता है ,
देश की आन बान शान तिरंगा
जब आकाश की ऊंचाइयों पर लहराता है ,
देखकर देश की तरक्की मन मेरा भी तिरंगे संग लहराता है,
पर होता है जब हकीकत से सामना मन छार छार हो जाता है,
कहने को तो हमने डॉलर बहुत विदेशी कमाया है,
पर देश के आख़िरी तबके का हाथ हमेशा ही खाली पाया है,
देश तरक्की कर रहा है अमीरों की संख्या बहुत बढ़ाई है,
पर उन जिंदगियों का क्या जिन्होंने कल ठिठुरते हुए जान गंवाई है,
कानून भी बहुत बना लिए हमने अदालतें भी बहुत लगा ली पर दरिंदों की आँखों में वो खौफ कहां से आए,
बेटियां बचा भी ली हमने बेटियां पढ़ा भी ली हमने पर बेखौफ वो घूम सकें वो फिजा कहां से लाएं,
कहने को तो फाइव स्टार अस्पताल बने हैं
योजनाएं भी बहुत हैं चल रही
फिर क्यों कोई बेबस लाचार माँ अपना इकलौता सहारा भी खो रही,
बातें देश का भविष्य बनाने की लांघ रहे हम अंतरिक्ष की रेखा हैं,
उसी भविष्य को मैंने कल
अधढके बदन में सड़क पर ठिठुरते देखा है,
कह रहे थे मुझे हक़ीक़त विदेशों तक चमकते इंडिया की,
रोटी थी उनकी मूलभूत आवश्यकता
दूर की कौड़ी थी कहानी कपड़ा और मकान की,
जिनकी नजर जानी चाहिए वो अभी जातिवाद में उलझे हैं,
लिबास बदलने का है खेल चल रहा
उनके खुद के किस्से ही कहाँ सुलझे है,
पहले बंट रहा था देश भगवा और हरा में
अब तो नए नए रंग सजाए जा रहे हैं,
राजनीति हर बार चाहे जीत जाए
देश तो हम हर बार ही हार रहे हैं।।