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प्रकृति के साथ | Onlinebulletin.in

©हरीश पांडल, विचार क्रांति, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

उछलते कूदते

धूम मचाते

जब स्कूल की

घंटी बज जाते

बस्ता लादकर

पीठ पर, दौडे दौडे

घर को जाते

मां जो भी पका कर

रखती मिनटों में ही

चट कर जाते।

हाथ धोकर,,

मुंह पोंछते

बिट्टू-किट्टू, डोलू भोलू

सबको जोर जोर

आवाज लगाते

कोई पकडे गुल्ली डंडा

किसी के हाथ में

बॉल और बल्ला

सरपट सभी फिर

दौड़ लगाते

मैदान में वे जल्द

पहुंचते

कोई करता बैटिंग

कोई करता चैटिंग

बात-बात पर लड़ते

सुलह फिर शीघ्र करते

सूरज के ओझल

होते ही

दौडे दौडे घर को आते

उछलते कूदते

धूम मचाते

हाथ मुंह धोकर

शांति से पढ़ने

लिखने लग जाते

रात को जल्दी

ही सो जाते।

भोर में जल्दी

ही उठ जाते

प्रकृति के साथ

हैं चलते

तभी तो वे बच्चे

कहलाते

बस्ता पीठपर

लादकर

सुबह फिर स्कूल

को जाते

उछलते कूदते

धूम मचाते ….

 


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