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नारी तुमको है मालूम | ऑनलाइन बुलेटिन

©संतोष जांगड़े

परिचय-बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़.


 

 

नारी तुमको है मालूम?

किसने पुस्तक में लिखकर,

तुमको गुलाम बनाया है?

कौन है जो लिख करके तुमको,

डंडे से पिटवाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने तुमको अबला कहकर,

मन कमजोर बनाया है।

कौन है जो शिक्षा न देकर,

पढ़ने से रूकवाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने पति के शव के साथ,

तुमको जिंदा जलवाया है?

कौन है जो तन को ढकने के,

वस्त्रों को दूर छुपाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने तेरे आजादी के

पन्नो को पलटाया है?

कौन है जो तेरे हक में,

संसद में आवाज लगाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने तेरे काम के घंटे,

कैसे कम करवाया है?

कौन है जो शिशुपोषण को

तुमको छुट्टी दिलवाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने तेरे राह रोकने

कांटो को बिछवाया है?

कौन है जो महिला आरक्षण बिल को

वर्षों से लटकाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने तेरे हाथ पैर को

जंजीरों से बंधवाया है?

कौन है जो चूल्हे तक के

तुमको सीमित करवाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने अपने मान के खातिर,

हाथों में बंदूक उठाया है?

कौन है जो 22 गिद्धों को,

खून से भी नहलाया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

ममतामयी मिनीमाता ने

नारी को सम्मान दिलाकर,

अपना परचम लहराया है।

रमाबाई ने देश के खतिर

अपना  दुख भुलाया है।

नारी तुमको है मालूम?

 

किसने तेरे मान के खातिर,

संसद को ठुकराया है

कौन है जो धन-धरती से

तुमको वंचित करवाया है?

नारी तूमको है मालूम?

 

किसने तुमको भोग की वस्तु,

दुनिया को बतलाया है?

कौन है जो तेरे तन को

है अशुद्ध बताया है?

नारी तुमको है मालूम?

 

कितनी पीड़ा सहती हो?

फिर भी धीरज धरती हो,

कितना भी लिखता जाऊं,

लिख नहीं सकता पूरा,

जितना चाहे कोई लिख ले,

सदा ही रहता है अधूरा,


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