भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के परिनिर्वाण दिवस पर प्रेस क्लब पथरिया द्वारा किया गया महिलाओं का सम्मान | ऑनलाइन बुलेटिन
बिलासपुर | [छत्तीसगढ़ बुलेटिन] | प्रेस क्लब पथरिया द्वारा भारत की प्रथम शिक्षिका माता सावित्रीबाई फुले जी की परिनिर्वाण दिवस पर नारी सशक्तिकरण एवं व्याख्यान सम्मान समारोह कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें पथरिया के विभिन्न विभागों में कार्यरत महिलाओं का सशक्तिकरण सम्मान से सम्मान किया गया।
©जलेश्वरी गेंदले
परिचय– शिक्षिका, पथरिया, मुंगेली, छत्तीसगढ़
बहुत कहते सुने हैं हमने अपने इतिहास पढ़ो -इतिहास पढ़ो।
क्या है???
इतिहास में क्या मिलेगा ये जाने आज -जाने आज
जानें हम इतिहास ।
फिर सही क्या है ?
यह बात चुनें – यह बात चुने
आज हम अपना इतिहास जानें।
छोटी सी उम्र में हुई सगाई।
थाम हाथ पिया के चली
छोड़ बाबुल के घर
अब हुई बेटी पराई।
विद्वान, गुणवान, बौद्धिक विचारवान
मिले जिन्हें पति के रूप में परमेश्वर नहीं
जीवन साथी सच्चा हमसफ़र।
जो स्वाभिमान के लिए
अपने लोगों का सोया स्वाभिमान जगाया
अनपढ़ पत्नी को पढ़ाया।
नारी उद्धार के लिए
समाज में एक नई परिवर्तन लाया।
लाखों दुख सहे
फिर भी फुले दंपत्ति संग- संग हैं चले
समाज के ठेकेदारों (मनुवादियों) ने
पग -पग हर पल है अपमान किए
घूम -घूम बांटी शिक्षा सुनी -सुनी गाली।
छुआ-छूत ऊंच-नीच के भाव दूर है मिटाया
विधवा विवाह पर जोर लगाया।
बाल विवाह पर रोक लगाएं।
उपचार हेतु अस्पताल खुलवाएं।
सती प्रथा पर रोक लगाई
सदियों से पिछड़ी शोषित, पीड़ित
नारियों के उत्थान के लिए
शिक्षा की ज्योत जलाए।
छाया हुआ था अंधेरा नारी के जीवन में
शिक्षा की ज्योत जला कर उजाला कर गई ।
हम पर है उनकी मेहरबानी
आज मैं शिक्षित हूं और पढ़ी-लिखी हूं।
अपने अभिमान, स्वाभिमान की पहचान कर पा रही हूं।
अपने प्रति हो रहे अन्याय, अत्याचार को एहसास कर पा रही हूं।
तो यह सब माता सावित्रीबाई फुले की देन है।
जिन्होंने हमें निरक्षर से साक्षर बन
जीवन जीने के लिए शिक्षा का है उपहार दिए।
खुद की कोख सूनी रख
ब्राह्मणी काशीबाई के
पुत्र को गोद लिए ।
जिनका नाम यशवंत रखा
धन्य है यशवंत पुत्र
जो महात्मा ज्योतिबाराव फुले
सावित्रीबाई फुले
के पुत्र कहलाए।
पर सेवा पर हित को
अपनी पुरी जीवन बिताएं।
निस्वार्थ रूप से प्लेग रोगियों का
उपचार कर अपना मानव धर्म निभाएं।
अभी भी अनजान है अपना समाज।
जिनकी वजह से शान शौकत, बंगला गाड़ी,
सारे जहान की खुशियां है पाए।
आज माता सावित्रीबाई फुले को है वो भुलाए।
जो 3 जनवरी 1831 को
ओबीसी समाज में जन्मी
जिन्होंने शूद्रों और महिलाओं के लिए
1848 में प्रथम विद्यालय खुलवाएं
उनके एहसान है हम पर
जिनका ऋण हम इस जन्म नहीं
कई जन्म में भी ना चुका पाए।
ना होती हममें सोचने समझने की शक्ति
नहीं हम लिख पढ़ पाते।
न ही कभी हम दुनिया को समझ पाते।
चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा होता।
पुरुष प्रधान देश में नारी के अस्तित्व रह जाता खोकर
ऐसे में हम कहां आसमान में उड़ पाते।
पढ़ी जब मैं इतिहास को
उनकी जीवनी संघर्ष, त्याग, तपस्या की कहानी।
मेरे आंख से बहने लगता है पानी,
कि कैसे इन्होंने हमारे लिए
समर्पित कर बिताई अपनी जिंदगानी।
लेखिका, कवित्री, शिक्षिका समाज सेविका,
नारियों के महानायिका।
को मेरा सादर नमन
हम आज जानेंगे
इतिहास पढ़कर महा नायिकाओं, की संघर्ष कहानी
आपको सुख- सुविधा जो मिल रही है
ऐसो आराम वो सब है
इन्हीं महामानव की मेहरबानी
इतिहास को पढ़ो यारों अब तो बना लें अपने भविष्य सुनहरे।
आज माता सावित्री बाई फुले
जो भारत की प्रथम महिला शिक्षिका
समाज सेविका रही है जिनका आज परिनिर्वाण दिवस
पर उन्हें सादर आदरांजलि अर्पित करते हैं …
माता सावित्रीबाई फुले सादर नमन
इन्ही की त्याग और समर्पण की
फल है ।
जो खिल रही है
आज मेरी जीवन की चमन।
नमन नमन नमन ….