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नारी हिमायती महात्मा गांधी | Onlinebulletin.in

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान


 

गांधी एक ऐसे कर्मयोगी का नाम है। जिन्होंने देश की हर समस्या पर अपनी चिंता ही व्यक्त नहीं की बल्कि उन समस्याओं के समाधान पर हर कोशिश को अपना साथी बनाया और उस कोशिश को साकार करने हेतु एड़ी चोटी का जोर लगाया। गांधी उस त्याग और तपस्या का नाम हो गया जो देश हेतू सब कुछ समर्पण करने के लिए तत्पर रहने का नाम और जीवन की कसोटी को पल-पल राष्ट्र रुपी यज्ञ की बलिवेदी पर परीक्षा देने का नाम हो गया।

 

उन्होंने सामाजिक क्रांति, सांस्कृतिक क्रांति, राजनीति क्रांति, आध्यात्मिक क्रांति और महिला क्रांति में भी वे पीछे नहीं रहे। महात्मा गांधी का एक महानायक बनने के पीछे सत्य और अहिंसा का उनके जीवन में बेजोड़ सूत्र था जो एक महा अस्त्र-शस्त्र से भी बड़ा था तो नारी शक्ति का भी उन्हें एहसास था। गांधी जी देश की आंतरिक शक्ति को मजबूत करना चाहते थे तो जनता को न्याय, समता और व्यवहार के सूत्र में बांधना चाहते थे।वे देश को अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते थे । जिसमें प्रत्येक नागरिक को स्वावलंबी, आत्मनिर्भर तथा आदर्श नागरिक बनाना चाहते थे। गांधीजी भारत को गुलामी से मुक्त कराना चाहते थे तो नारी को सशक्त बनाना चाहते थे।

 

गांधीजी चाहते थे महिला स्वयं इतनी सफल हो कि खुद की ही नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है उनका कहना था अगर महिलाओं को आजाद होना है तो उन्हें निडर बनकर जीना होगा। वे महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलवाने के लिए। भय मुक्त और सशक्त बनाने के लिए उन्होंने जीवन भर प्रयास किया।

 

उनका मानना था कि भारत जब आजाद हो जाए तो आदमी और औरत में कोई भेदभाव ना रहे।असमानता ना रहे चाहे महिलाओं को सूत कातना पड़े, चरखा चलाना पड़े। महिला स्वाबलंबी, आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन खुद जी सके। उन्होंने देश में वर्धा आश्रम और साबरमती आश्रम का संचालन महिलाओं के हाथ में सौंपा था। मीरा बेन और बा इसके उदाहरण हैं।

 

किसी महिला ने उन को पत्र लिखकर गांधी जी से यह सवाल किया था की महिला अहिंसा में आत्मरक्षा कैसे कर सकती है तब उन्होंने बेबाकी से उत्तर दिया था -“जब भी किसी स्त्री के साथ दुर्व्यवहार की घटना हो तो हिंसा-अहिंसा का विचार न करें। ईश्वर ने जो नाखून और दांत दिए हैं जो बल प्रदान किया है उसका उपयोग करें क्योंकि आत्मरक्षा ही परम धर्म है।”

गांधी जी सदा चाहते थे कि महिला आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन खुद जिए ना कि वह पुरुष के आगे अपने हाथ फैलाए बल्कि वह पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चले। मजबूत बने। सशक्त बने। उनके आश्रम में कस्तूरबा,  मीरा बहन के अलावा सरोजिनी नायडू, एनी बेसेंट, अरुणा आसफ अली, कमला नेहरू, इंदिरा गांधी, मातंगिनी हाजरा, मधुबेन,सुशीला नायर, सरला देवी चौधरानी, डॉ लक्ष्मी सहगल, मैडम भीकाजी कामा, कनकलाता बरूआ, मनूबेन आदि महिलाएं महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से अग्रणी रही।

 

महात्मा गांधी का पूर्ण विश्वास था की महिलाएं जिस शिद्दत से और जुझारुपन से किसी कार्य को निभाती है वह लाजवाब और अनुकरणीय होता है। वे सदा महिला समानता के पक्षधर रहे।वे महिलाओं को शिक्षित और हुनरमंद बनाना चाहते थे जिससे एक सशक्त समाज का निर्माण हो सके तभी सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा।

 

उनका मानना था कि स्त्री शिक्षा के अभाव में समाज और राष्ट्र का उद्धार संभव नहीं है। वे दहेज प्रथा के घोर विरोधी थे उनका कहना था -“अगर मेरी कोई लड़की होती तो मैं उसे कुंवारी रख लेता जीवन भर किंतु ऐसे पुरुष से विवाह नहीं करता जो दहेज में कौड़ी भी मांगे।”

 

महात्मा गांधी विधवा विवाह के समर्थक थे।वे कहते थे यदि अहिंसा हमारे जीवन का धर्म है तो भविष्य नारी जाति के हाथों में है जहां तक स्त्रियों के अधिकारों का सवाल है तो मैं कोई समझौता नहीं करूंगा बल्कि बेटे और बेटियों के साथ एक जैसा व्यवहार करना चाहूंगा।

 

नारी को अबला कहना उसकी मानहानि है।स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं दोनों के आपसी सहयोग के बिना दोनों का अस्तित्व असंभव है स्त्री को युगों से चल रही बुराइयों कुरीतियों को नष्ट करने का विशेष अधिकार होना चाहिए।

 

इस प्रकार महात्मा गांधी के आंदोलनों का हिस्सा रहने वाली नारी के लिए आज भी गांधी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने आज से 100 वर्ष पहले। गांधी राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए पहले नारी को हर तरह से सशक्त बनाना चाहते थे और इस देश की बुराइयों को, कुप्रथाओं को मिटाना चाहते थे। स्वस्थ भारत का निर्माण हो सके।

 

आदर्श मां से आदर्श संतान की उत्पत्ति होगी और आदर्श संतान से आदर्श राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा। महात्मा गांधी केवल मात्र राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि एक दूरदृष्टा, विचारक और नारी हिमायती थे। तभी तो उन्होंने कस्तूरबा को बराबर का दर्जा दिया और सदा अपने साथ रखा चाहे कोई सा भी उन्होंने अपने जीवन में आंदोलन लड़ा हो।


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