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हां मैं लिखूंगा | Newsforum

©अविनाश पाटले, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

हां मैं लिखूंगा अफसाना

मेरा काम ही है

सोये हुये को जगाना

मैं तब तक लिखूंगा

जब तक नहीं जागेंगे जमाना

सोये हुए है जैसे

नहीं है शरीर में जान

है यहां सब मुर्दे समान

लगता है ये रास्ता भूल गए है

ये तो कहीं और चल पड़े है

मैं नहीं छोड़ूंगा कलम चलाना

हां मैं लिखूंगा अफसाना

मेरा काम ही है

सोये हुये को जगाना

है मिले रास्ते में कोई अजनबी सा

मोड़ लिए है इन्हें अपने राह

चले गए उस पथ पर बने अंधक

भरे अंधविश्वास मन है बंधक

है परे वास्तविक से बुद्धि को मार

सदियों से है पीढ़ी दर पीढ़ी बीमार

समय यही है परिवर्तन लाना

हां मैं लिखूंगा अफसाना

मेरा काम ही है

सोये हुये को जगाना।

मैं निकल पड़ा हूँ

अब वीराने पथ पर

मैं आया हूँ ज्ञानदीप लेकर

मिटाऊंगा मैं मानसिक अंधकार

दिलाऊंगा मैं दलित शोषित

का छीने हुये अधिकार

जब तक तुम सुनोगे नहीं

तब तक मैं करूँगा पुकार

उनवान है उन चीसकी

चीत्कारती सांसो का

भूखे मरते आशों का

जो हदय में वेदना

अपनो के लिए देता है

उस दर्द के कर्ज है चुकाना

हां मैं लिखूंगा अफसाना

मेरा काम ही है

सोये हुये को जगाना।

सोये हो तुम गहरी निंदिया से

वंचित हो तुम सदियों से

अपने ताकत को पहचानो

अपने सपनों में जान डालो

तोड़के दासता प्रथा की बेड़िया

अपने पंखों में उड़ान भर लो

लगने लगा है ये शहर वीराना

तम रूपी मन में सवेरा है लाना

हां मैं लिखूंगा अफसाना

मेरा काम ही है

सोये हुये को जगाना।


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