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आप और हम | ऑनलाइन बुलेटिन

©गुरुदीन वर्मा, आज़ाद

परिचय– गजनपुरा, बारां, राजस्थान.


 

आप है बहिर्मुखी और हम है अंतर्मुखी,

क्योंकि आप महशूर है और हम गुमनाम।

आप हर एक में हो और हम सिर्फ खुद में ही,

क्योंकि आप खुदा है और हम सबसे जुदा।

आप मालिक है और हम है सेवक,

क्योंकि आप राजा है और हम है आवाम।

 

 

आप है महलों की शोभा और हम है झुग्गी वासी,

क्योंकि आप है दौलतमंद और हम है खोटा सिक्का।

आप प्रज्ज्वलित हो रात में और हम है बुझते दीपक,

आपके साथ रोशनी है और हमारे साथ अंधेरी रात।

आप अगाड़ी हो रफ्तार में, हम पिछड़े हैं दौड़ में,

आप दौड़ाते हो अपनी गाड़ी, हम चलाते हैं अपने पैर।

 

 

आप सागर हो जल के, हम एक बूंद है नीर की,

आप हो आँखों के नूर, हम है आँखों के अश्क।

आप खरीद सकते हो सब कुछ, हम बेच देते हैं सब कुछ,

आप पाने हो अपनी हुकूमत, हम बचाने को अपनी जान।

आप है अनमोल मोती जमीं पर, हम है रज चरणों की,

बोलो कैसे कर सकते हैं हम जीवन में आपकी बराबरी।

 

 

आप पर फिदा है दुनिया, हम पर मेहरबां मुफलिसी,

आप सूरत हो मूरत की, हम पत्थर है बिन तराशें।

कैसे पा सकते हैं हम, आपकी तरह ऊंचा मुकाम,

क्योंकि गूंजती है आवाज सभाओं में,

और दब जाती है हमारी आवाज उस शोर में,

आपकी होती जय जयकार, जिन्दाबादी में।


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