भीतर बैठे उस रावण को फिर से यहां जलाते हैं | ऑनलाइन बुलेटिन
©राजेश श्रीवास्तव राज
परिचय- गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश.
आओ दशहरा मिलकर हम सब फिर से यहां मनाते हैं।
भीतर बैठे उस रावण को फिर से यहाँ जलाते हैं।।
कलुषित मंशा दंभ लोभ मै, नाना पापाचार लिए।
लंका पूरी बसी हुई है भीतर ही प्रतिघात किए।।
कौन जलाएगा अब लंका ना कोई हनुमान है।
दहन करे ऐसे रावण का, ना ऐसा कोई राम है।।
जला के पुतला मना दशहरा हम हर्षित हो जाते हैं।
भीतर बैठे उस रावण को कैसे हरा हम पाते हैं।।
मां सीता को राम बचा के वापस अवध में आते हैं।
रावण को हरि धाम दिखाकर विजय सत्य पर पाते है।।
आदर्शों की बात न करके काम यहाँ कुछ करना है।
जला के पुतला अंतस रावण का स्वयं के तम को हरना है।।
नित संघर्षों की बेड़ी से हम सब को लड़ते रहना है।
मेघ दशानन कुंभ यहां पर नहीं किसी को बनना है।।
आओ दशहरा मिलकर हम सब फिर से यहां मनाते हैं।
भीतर बैठे उस रावण को फिर से यहाँ जलाते हैं।।
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